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________________ /२९ अध्ययन वीर्जु. अणाणाए पुठ्ठावि एगे णियति मंदा मोहेण पाउडा । [७७] “अपरिग्गहा भविस्सामो” समुद्राए लढे कामे अभिगाहेति, अणाणाऐ मुणिणो, पडिलेहंति, एत्थं मोहे पुणो पुणो सण्णा, णो, पाराएं । (७८) विमुत्ता हु ते जणा, जे जणा परिगामिणो लोभं अलोभेण दुर्गछमाणे लद्धे कामे णाभिगाहइ, विणावि लोभ निक्खम्म एस अकम्मे जाणति पासति । पडिलेहाऐ णावकंखति, एस अणगारेत्ति वुच्चति । (७९) अहोयराओ परितप्पमाणे, कालाकालसमुद्राश, संजोगट्टी, अट्टालोभी आलुपे, सहसाकारे, विणिविट्टचित्ते एत्थ, सत्थे पुणो पुणो । (८०) १ प्रावृताः अज्ञानी मूढ जीवो परीसह के उपसर्ग आवतां भाज्ञाथी बाहेर थइ संयमथी भ्रष्ट थता रहे छे. [७७] “अमे अपरिग्रहीज छोए " एम वोली केटलाएक दीक्षित थया थका पण आज्ञाधी बाहेर थइ मुनिना वेपने लजवता थका मळता काम सेवता रहे छे तथा ते भेळववाना उपयोगमां मच्या रही वारंवार मोहमां वुड्या रहे छे तेओ नथी आ पार, के नथी पेले पार. १ [७८] खरेखर तेज पुरुषो विमुक्त २ जाणवा जेओ संयमने सदा पाळता रहे छे. जे पुरुष निर्लोय थइ लोभने धिकारी कहाडी मळता कामभोगने इच्छे नहि, अथवा जे मूळीज लोभने निर्मूळ करी दीक्षित थाय ते कर्मरहित बनी सर्वज्ञ सर्वदर्शी थाय माटे एम विचारीने जे लोभने इच्छे नहि ते अणगार कहेवाय छे.(७९) ___अज्ञानी जीवो रात दीवस दुःखी थता थका, काळ अकाळनी दरकार नहि धरता, स्त्री अने धनना लोभी वनी वगर विचारे वारंवार अनेक आरंभ करता रहे छे. [८०] १ एटले के नधी मुनी अने नथी गृहस्थ. २ त्यागी.
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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