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________________ २२ आचारांग-मूळ तथा भाषान्तर. जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाण्इ; जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ । एयं तुल-मन्नेसि । इह सतिगया दविया १ णावखंति जीविउ । (५५) लज्जमाणा पुढो, पास, “अणगारा मोति" एगे पवयमाणा; जमिणं विरूववेहि सत्येहिं वाउकामसमारंभेणं वाउसत्थं समारंभमाणे अण्ठे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ । (५६) . . ___तत्थ खलु भगवयां परिणा पवेइया । इमस्सचेव जीवियस्स परिवंदणमाणणप्यणाए, आइमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेडं, से सयदेव वाउसत्थं समारंभति, अन्नेहिं वाउसत्यं समारंभावेति, अन्ने वा वाउसत्यं समारंभंते समणुजाणति; तं से अहियाए, तं से अबोहिए। १ [द्रयः संयम स्तद्वतः] २ [ वायु कायोपमर्दैन इति शेषः], छे ते तेनी हिंसानो परिहार करी शके छे. जे आत्मनी अंदरनी वातने जाणे छे वे बाहेरनी वात (पण) जाणे छे, ने जे बाहेरनी वात जाणे छे ते अंदरनी वातने (पण) जागे छे. ए वे वात सरखी रहेली छे एम समजबु. माटे अहीं जे शांतिमां. मन संयमि पुरुषो होय छे तेओ (वायुकायनी हिंसावडे) जीवदाने नथी चाहता. (५५), हिंसाथी शरमाता केटलाएक वोले छे के “अमे अणगार छीए," पण ते लेमनुं बोलवू व्यर्थ छ केमके जुओ, तेओ विचित्र शस्त्रोथी वायुकाय तथा अन्य अनेक जीवोनी हिंसा करता रहे छे. [५६] । आ स्थळे भगवाने सरस रीते समजण आपेली छे के लोको आ क्षणिक जींदगीना, कीर्ति, मान, तथा उदर निर्वाहार्ये, जन्म मरणथी मुफ्त थवा माटे, तथा दुःखने दूर करवा माटे जाते वायुकायनी हिंसा करे छे, वीजा पासे करावे छे, अने करनारने रुडं माने छे. पण ए प्रवृत्ति तेने अंते अहितकर्ता तथा अज्ञान वधारनार थवानी. (५७)
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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