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________________ [३८६ ] आचारांग मूळ तथा भाषान्तर तत्थिमा पढमा भावणाः - अणुवीइभासी से णिग्गंथे, जो अणुवीइभासी; केवली बूया - अणवइिभासी से णिग्गंथे समावदेज्जा मोसं वयणाए । अणुवइभासी से णिग्गंथे, णो अणणुवी भासीति पढमा भावणा । [ १०४० ] अहावरा दोच्चा भाणा. - कोहं परिजाणाइ से णिग्गंथे, णो कोहणे सिया; केवली बूया कोहप्पत्ते कोही समावदेज्जा मोसं वयणाए । कोहं परिजाणाइ से णिग्गंथे, णय कोहणे सियत्ति दोच्चा भावणा । [ १०४१] अहावरा तच्चा भवर्णाः - लोभं परिजाणाइ से णिगंथे, णो य लोभणे सिया; केवली बूया - लोभपत्ते लोभी समावदेज्जा मोसं वयणाए । लोभं परिजाणइ से णिग्गंथे, णो य लोभणए सियति तच्चा भावणा । [१०४२ ] त्यां पेली भावना आ :- निर्ग्रथे विमासीने बोलवं, वगरविचारेधी न बोलवं केमके केवळी कहे छे के बंगर विमासे वोलनार निर्ग्रथ मृपा वचन बोली जाय. माटे निर्ग्रथे विमासीने वोलं, नहि के वगर विमासे. ए पेली भावना [१०४०] वीजी भावना ए के निर्व्रये क्रोधनुं स्वरूप जाणी क्रोधी न थवं. केमके केबळी कहे छे के क्रोध पामेल क्रोधी जीव मृपा बोली जाय. माटे निर्व्रये क्रोनुं स्वरुप जाणी क्रोधी न थवं. ए बीजी भावना. [१०४१] जीजी भावना ए के निग्रंथे लोभनुं स्वरुप जाणी लोभी न थवं. केमके के वली कहे छे के लोभी जीव मृपा वोली जाय. माटे निग्रंथे लोभी न थवं ए त्रीगी भावना. [१०४२ ] १ विचार पूर्वक (with deliberation )
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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