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________________ अध्ययन वावीशी वा बिसहेज जज अध्ययन वावीशमुं. से से परो सीसाओ लिक्खं वा जूयं वा णीहरेव वा विसोहेज चा, णो तं सातिए ० [९७९] से से परो अंकसि पलियकसि वा तुयहावा, पादाई आमजेज चा पमजेज वा-एवं हेटिंमो गमो पायादि भाणियव्यो । से से परो अंकसि वा पलियंकसि वा तुयावेचा हारं का, अद्धहारं वा, उरच्छं वा, गेवेयं वा, मउडं वा, पालेबं वा, सुबण्णसुत्तं वा) आविधेज वा, पिगिंधज्ज वा णो तं सातिए ० [९.८०] ___ से से परो आरामसि वा उजागसि वा जीहरित्ता वा विसोहित्ता वा पायाई आमजेज वा, पमजेज वा णो तं सातिए • [९८१] एवं णेतव्वा अण्णमण्णकिरियावि । [९८२] से से परो सुद्धेणं वतिबलेणं १ तेइच्छं २ आउट्टे, स से परो असु हेणं वतिबलेणं तेइच्छं आउट्टे, से से परो गिलाणस्स सचित्ताई कंदाणि । १ वाग्बलेन-मंत्रादिसामर्थ्येन २ चिकित्सा. वळी कोइ मुनिना माथामांधी लीख के जू काढे के शोधे तो ते पण इच्छ बुं के नियम नहि. [९७९] वळी कोइ मुनिने खोळामां के पलंग पर मुबाढी पग विगेरेनी पूर्वोक्त क्रिया करे अथवा हार, अर्धहार, उरस्था आभरण, ग्रेवाभरण२, मुगट, भलंब [माळा) के सुवर्ण सूत्र (सोनानो दोरो) पहेरावे तो ते पण इच्छबू के नियमबुं नहि [९८०) ___ एज रीते कोइ मुनिने आराम के उद्यानमा लइ जइ पग विगरेनी पूर्वोक्त क्रिया करे तो त्या पण तेयज समज. [१८१] आज रीते अन्योन्य क्रिया (मुनिओमां एकवीजा तरफची करेली क्रिया) वाचन पण समजी लेवू. [२.८२] कोड गृहस्थ शुद्ध के अशुद्ध वचनवळ (मंत्र) थी, अथवा कंद, मुळ, छाल, .. १ छातीए लटकता २ गळागां परवानां आमरण.
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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