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________________ अध्ययन वावीसमुं. परक्रियाख्यं द्वाविंश मध्ययनम् । . [एकादेशं] पकिरियं अन्भत्थिी संसेसियं यो तं सातिए, यो त निय. में। (९७१) से से परो पाए आमज्जेज वा, णोतं सातिए, णोतं नियम। से से परो पायाई संवाहेज्ज वा, पलिमदेज्ज वा, जो तं सातिए, जो तं • १ आध्यात्मिकी आत्मनि क्रियमाणां २ संश्लैषिकी ३ स्वादयेत् अभिलषेत् ४ नियमयत्-कारयेत् वाचा कायेनच. ५ तस्य ६ स पर: अध्ययन चावीशम. परक्रिया. पहेलो उद्देश वीजानी क्रियामां मुनीए केय वर्तवं. मुनिना शरीरने कोइ गृहस्य कर्मबंधजनक क्रिया करें तो ते मुनिए इच्छर्नु नहि अने नियम, 1 पण नहि. [९७१] [दाखल्य तरीके 7 कोइ ग्रहस्थर मुनिना पग साफ करे चां, दावे, अ. डके, रंगे, तेल, घी, के घरवीथी मसले के चोपडे, लेदर क्षार लोट के मुकावडे ? इहां टीकाकार तथा बालावबोधकर्ता " नियम " ए पढ़नो अर्थ एवो करे ले के इच्छ नहि ते मनवडे चहाई नहि अने नियमई नहि ते वचन त्या फायावडे कराग नहि. परंतु ग्रेजी भाषांनर का एम अध कर इन्दु नादि अने " नियमg " एटले अटकाव पण नदि, check २ धर्मादायी टीका
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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