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________________ अध्ययन सत्तर. [३३३] ___ इच्चेयाइं आयतणाई उवातिकम्म अह भिक्खू इच्छेज्जा- चउहिं पडिमाहिं ठाणं ठाइत्तए । (३१३) । तत्थिमा पढमा पडिमा:-" अचित्त खलु उवसज्जेज्जा; अवलंबे ज्ज कारण, विपरिकम्मादी ; सवियार.२ ठाणं ठाइस्सामि "। पढमा पडिमा. (९१४) __ अहावरा दोच्चा पडिमा:-अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा; अवलंबे ज्जा काएण । विपरिकामाइ; णो सवियारं ठाणं ठाइरसामि । दोच्चा पडिमा । (९१५) अहावरा तच्चा पडिमा:-अचित्तं खलु उवसलेला; अवलंबेजा णो कारण; विप्परिकम्माइ; णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि ति। तच्चा पडिमा । (९१६) , आकुंचनप्रसारणादि २ पादविहरणं. ए उपर बतावेला कर्मजनक स्थानोथी दूर रही साधुए घार प्रतिज्ञाओथी स्था रहेदानुं सुकरर कर. [९१३] ., त्यां पहेली प्रतिज्ञा आ प्रमाणे:-अचित्त स्थळमा रहे अचित वस्तुतुं अपलंघन करवू, हाथ पगर्नु आकुंचन-प्रसारण कखं, तथा थोड़ें फरवार्नु राखवू. ए पहेली प्रतिज्ञा. [९१४] पीजी प्रतिज्ञाः-अचित्त स्थळमा रहेवू; अचित्त वस्तु अवलंबन करखं ___ हाथ पगर्नु भाकुंचन-प्रसारण फखं, किंतु फरवावें घंध राख. ए पीजी प्रतिज्ञा [९१५] __त्रीमी प्रतिज्ञाः-अचित्त स्थळमां रद्देवू; अवलंबन कंह पण न कर; इंथि पगर्नु आकुंचन-प्रसारण करखं, अने फरवावें वंध राखg. ए पीजी प्रतिज्ञा... [९१६]
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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