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________________ [320] आचारांग - मूळ तथा भाषान्तरे. तत्थ खलु इमा पढमापडिमा :- से आनंतारेसु वा [ ४ ] अणुवीइ उग्गहं जाएज्जा, जाव, विहरिरसामो । पढमा पडिमा । ( ९०२) अहावरा दोचा पडिमा : - जस्सणं. भिक्खुस्स एवं भवति, "अहं च खलु अण्णसिं भिक्खूणं अडाए उग्गहं गिण्डिस्सामि; असिं भिक्खूणं उगलिए उमड़े उद्धस्त मे " । दोच्चा पडिमा । (९०३) अहावरा तच्चा पडिमा : - जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवति, " अहं १ द्वितीया प्रतिमा सामान्येन इयं गच्छांतर्गतानां संभोगिकाना मसंभोगिकानां चोद्युक्तविहारिणां यत स्तेन्योन्यार्थ याचंत इति. २ तृतीया - एषा त्याहालंदिकानां यतस्ते सूत्रार्थवशेष माचार्यादभिकांक्षंते, आचार्यार्थ याचते वीजी प्रतिज्ञा:- कोइ साधु एवो ठराव करे के “ हुं बीजा साधुओने माटे अवग्रह मागीश. अने वीजाओए लोधेला अवग्रहमां रहीश. " ए व.जी प्रतिज्ञा. [१०३] त्रीजी प्रतिज्ञाः २ - कोई साधु एवो ठराव करे के “ हुं बीजा साधुओना अर्थे अवग्रह (मुकाम) लइश; पण बीजाओना लीवेला अवग्रहमां रहीश नहि. “ए त्रीजी प्रतिज्ञा. [९०४] " चोथी प्रतिज्ञा : - कोई साधु एवो ठराव करे के “ हुँ वीजा माटे अवग्रह 3 ? वीजी प्रतिज्ञा; गच्छमां रहेल सांभोगिक या अस/भोगिक उद्युक्त विहारवाळाने होय; कारण के तेओ एक वीजा माटे मागे छे. जुओ फुटनोट कलम ८५५ नी २ त्रीजी प्रतिज्ञा, आहालंदिक मुनिने होय; जे माटे तेओ सूत्रार्थनो अवशेष आचार्य पाथी चाहे छे तेमज आचार्य माटे याचे छे. ३ चोथी प्रतिमा, गच्छमां रहेला अभ्युद्यत विहारि मुनिओ जेओ जिनकल्पी आदिका माटे तैयारी करता होय तेमने होय.
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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