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________________ अध्ययन सोळमुं. . . अवग्रह-प्रतिमाख्यं षोडश मध्ययनम्, [प्रथम उद्देशः ] " समणे भविस्सामि अणगारे अकिंचणे अपुत्ते अपसू परदत्तभोगी पावं कम्म णो करिस्सामी ति, समाए, सव्वं भंते अदिण्णादाणं ' पञ्चक्खामि " | [८६८] से अणुपविसित्ता गामं वा जाव रायहाणि वाणेव सयं अदिन्नं गिण्हेज्जा; णेव-पणेणं अदिन्नं गिण्हावेज्जा; णेव-पणेणं अदिगं गिण्ह अध्ययन सोळमुं अवग्रह-प्रतिमा. पहेलो उद्देश. (रहेवार्नु मकान केg पसंद कर.) 'हुँ श्रमण छ माटे हुँ घर, दौलत, पुत्र, परिवार, तथा चतुष्पदादिक सवे वस्तुनी ममता छोडीने भिक्षात्तिथी वीजा पासेवी जे कंइ मळशे तेनावडे निर्वाह करतो थको पापकर्म नहि करीश. आ रीते सावध थइ हुँ एवी प्रतिज्ञा लङ छ के हे पूज्य, मारे सर्व जातनी वीनाए नहि आपेली वस्तु ग्रहण करवी नहि." [८६८] आवा प्रतिज्ञावंत मुनिए गाम के शहेरमा जइ पोते जाते, वीजाए नहि आपेली वस्तु लेवी नाह; वीजान कहिने लेवरायची नहि, तथा जे लेतो हाय तेने
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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