SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्ययन वारमुं. . . [२५९] एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सब्बदेहिं सहित सदा जएज्जासि त्ति बेमि । (७३२) [द्वितीय उद्देशः] से णं परो णावागओ गावागयं वदेज्जा:-" आउसंतो समणा, एयं ता तुमं छत्तगं वा जाव चम्मछेयणगं वा गिण्हाहि, एयाणि तुम विरूवरूवाणि सत्थजायाणि धारेहि, एयं ता तुमं दारगं वा दारिंगं वा पज्जेहि , णो सेत्तं परिणं २ परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा । (७३३) १ पायय २ प्रार्थनामित्यर्थः - - - एज खरेखर मुनि अने आर्याना आचारनी संपूर्णता छ के तेमणे वधी पावतोमा संभाळ पूर्वक वर्तवं. [७३२] बीजो उद्देश. - (बहाणपर चडवा तथा पाणीमांधी पसार थवा विगैरे विधि.) वहाणपर चडेला मुनिने वीजा वहाणपर चडेला लोक एयू कहे के " हे आयुषान् श्रमण ज छत्र या चमें कापत्रानुं हथियार पकड, तथा आजूदी जूदी जातना हथियारो धरी राख, अथवा आ वाळक के वाळिकाने (दूध विगेरे) पीवराव" आ हुकम स्वीकारवा नहि किंतु मौन रया करव॒. [७३३]. .
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy