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________________ [२५४] आचागंग-मूळ तथा भाषान्तर से भिक्खू वा भिक्षुणी या गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया:-- से जं पुण विहं जाणेज्जा एगाहेण वा दुयाहेण वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा पाउणेज वा, णो पाउणेज्ज वा, तहप्पगार विहं अणेमाहगमणिजे सति लाढे जाव णो बिहारवत्तियाए पवजेन्ज गमणाए । केवळी बूया 'आयाण मेयं । अंतरा से वाससि वा पाणसु वा बीएस वा हरिएसु वा उदएसु वा मट्टियाए वा भविडत्थाए। अह भिक्खूणं पुच्चो वदिवा जाव नं तहप्पगारं अणेगाहगमणिज्जं जाव णो गमणाए, ततो संजयामेव गामापुगाम दूइज्जेज्जा गमणाए । (७२२) । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दुईजमाणे अंतरा से णावासंतारिमं उदयं सिया, से जं पुण णावे जाणेजा-असंजए भिक्खुपडियाए १ अनेकाहगमनीयः पंथाः । मुनि अथवा आर्याने ग्रामानुग्राम फरतां वच्चे कोइ योहोर्से मेदान उल्लंघका नु आवी पडे के जेनो छेडो आखो एक दिवस के वेत्रण चार या पांच दिवस चाल्याधीज मळी शके या नहि पण मनी शके, तेवा बहु लांबा रस्ते वीजो हुँको रस्तो मळी आवतां छतां नहि चालवू. कारण के तवे लांचे रस्ते चालतां केवळज्ञानिए अनेक दोष वताव्या छे. जे माटे त्यां लांवो वखत चालवा होतां बच्चे कदाच वरसाद आवी पंड तो ते रस्तामां जीवजंतु, वनस्पति, पाणी तथा लीली मा टी भराइ जाय छे, माटे मुनिए तेवे मार्गे नहि चालवू. [७२२] मुनिए वहाण पर क्यारे चढवू ? मुनि के आर्याने एक ग्रामथी वीजे ग्राम जतां बच्चे कदाच वहाणथीन तरी शकाय एटलं पाणी आडे आवे तो तेमणे आ प्रमाणे वर्त:-जे वहाण असयमी गृहस्थे सावुना माटेज वेचा लइ राख्थु होय या उछीतुं लइ राख्यु होय.
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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