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________________ [२४६] आचागंग-मूळ तथा मापान्तर डिलोहियए, पणत्थ आयरिएण वा उवज्झाएण वा जाव गणावच्छेइएण वा वुद्वेण वा सेहेण वा गिलाणेण वा आएसेण वा अंतेण वा मझेण वा समेण वा विसमेण वा पवाएण वा निवारण वा तओ संजयामेव पडिलेहिय पडिलेहिय पमन्जिय पमज्जिय बहुफासुयं सेज्जासंथारगं संथ. रेन्जा । [७०६] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुफासुयं सेज्जासंथारगं संथरित्ता अभिकंखेज्जा बहुफासुए सेज्जासंथारर दुरुहित्तए । [७०७] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुफासुए सेज्जासंथारए दुरुहमाणे से पुवामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जिय पन्जिय ततो संजया.. मेव बहुफासुए सेज्जासंथारगे दुरुहित्ता तओ संजयामेव बहुफासुए सेज्जासंथारए सएज्जा । [७०८] १ प्राघूर्णकेन वा २ इतः सप्तम्यर्थ तृतीया. प्रसंगे आचार्य, उपाध्याय, गणावच्छेदक, तथा वृद्ध, वाळ, विमार के माहणा . मुनिना माटे रखायली जगा छोडी वाकीनी बीनी जगामां छेडे के वच्चमां सरखी जमीनमां के खरबचढीमां बहु पवनवाळीमां के पवन विनानीमां मुनिए. यतना पुर्वक जोइ तपासी पुंजी प्रमार्जीने निर्जीव शय्या पाथरवी. [७०६] मुनि के आर्याए उपर जणाच्या मुजव निर्जीव शय्या पाथरीने तेवी शय्यामां आळोटवा चहा. [७०७] . मुनि अथवा आर्याए शय्या पर सूती वरखते शरुआतमाज मस्तकी पग लगीना शरीरने प्रमाजा माजीने यतना पूर्वक ते शय्या उपर शयन करवं [७०८]
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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