SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्ययन अगीयारमुं. पिहणओ, पिंडवायेसणाओ । सेय भिक्खु चरियारए ठाणरए निसीहियारए सज्जा-संथार-पिंडवातेलणारए, " संति भिक्खुगो एव मक्खाइणो उज्जुअडा णियागपडिबन्ना अमायं कुचमाणा वियाहिया। (६७९) संतेगइआर पाहुडिया उक्खित्तपुव्वा भवति, एवं णिदिखत्तपुव्वा भवति, परिभाइय पुव्वा भवति, परिमुत्तपुब्बा भवति, परिधावियाच्या भवति । एवं वियागरेमाणे समियाए वियागरेति ? हता, भवति । (६८०) १ भिक्षवः २ संति केचन ये एवंमृतां छलनां कर्यर्यथा ३ दानार्थ कल्पिता वसतिः निदप जग्या पळची मुभल छे. कारण के तेमा मुनिन माटे छत करी हो या. लीप्यु यु हो या वटकना फेरफार कर्यो हंग या दरवाना कमाउन मोटा कर्या हो वळी कढाच त्यां रहेनां मुनि ने जग्याना मालेकना यावी मामातर दोपने गळया आहारपाणी न ल्ये त्यारे ते मालेक कोपाय पान पण यायः न्यादि अनेक दोष संभवे छे. अने कहाच ए पोयी गति मकान मळे तोपण मुनि ना खपने अनुज मकान गळ, मुरकेलन के कारण के नेत्राने तो बसने फरचा, होय छ, वरदते स्थिर देसवातुं सोय , बवते अभ्याल कखानु राय छ, बरखते स्वान होय है, अंने बखन गोचरीप जवातुं गेय हे. माटेगवी वाचनमा समऊ पनुं मकान महुँ दलभन छ." आने केटयाएक सरळ मुमुक्ष मुनिश्री निफरटपणे वसतिना दोष कही बनाये छ. [६७५) घणीएक मेला केटापक गृहन्यो मुनिना गाटेज मकान बांधीने मुनि प्रा. गट भावी छ जना छ, जनके भा मवान तो में पारा सारंज व स , क . के वायु के. माटे मुनिष पनीरनारी भर नहि. जे मुनि मायाणे वनिना बोले गृटम्याने काही बना ले ने गमाग गान का उलंगन नयी. [६८०
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy