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________________ २२८ आचारांग-मूळ तथा थापान्तर. से मिक्स्व वा भिकखणी वा से जं पुण उक्त्तयं जाणेजा-तणपुंजेसुबा पलालपुंजे नु अपडे जाव चेतेजा। [६६७] से आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियात्रसहेमु वा अभिक्खणं अभिक्खण साहम्मिएहिं ओवयमाणेहिं णो ओबएज्जा । [६६८] से आगंतारेसु वा जाव परियावसहेसु वा जे भयंतारो उउबहियं वासाशसियं या कप उबातिणित्ता तत्येव मुजो भुजो संबसंति, अय. माउसो कालाइतकिरिया भवति । (६६९) से आगंतारनु वा जाव परियावसहेसु वा जे भयंतारो उउबहिय वा वासावासियं वा कप्पं उवातिणावेत्ता तं दुगुणात्ति गुणण अपरिहरिता अल्पाव्दोऽभाववचनः २ अवपतेत् ३ ऋतुबद्धं शीतोष्णकालयोासकल्पं. अन जे मकान मात्र के पालना जथ्यागा आवेगुं छतों जीमजतु रहित गाय त्यां निवास करती. [६६७] रळी सुसाफरन्दाना, वंगला, घर, तथा भो के ज्यां वारंवार त्रीमा साधुओ आधी पड़ता होय त्या पण मुनिए नति ज. [६६८] जे मुाने भगवंतो तेवा मुसापारवाना, बंगला, या रगे के मयां एक सहिनो अधवा वन्तुना चार महिना रहा बाद फी वाचार त्यां भारी वरन छ ते आयुनन् , कालानिमोनक्रिया नाये दोपवाली बस्ती जाणत्री. (६०५) जे मुनि भगवती तथा मुसाफारस्याना के मठोमा एक महिना अथवा बारतुना चार महिना रही पाछा ते गुजरला काळयी वाणा ? अयणा बखतनुं अंदर ? जेठन्दो चयन एक गाममा रहेल होय नी याणा के प्रमाण बदतर विणगाने गागमा अवाय.
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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