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________________ अध्ययन अगीयार. २१७] अप्पपाणं जीव अप्पसताणायं तहष्पगारे उवस्सए पडिलेहेत्ता पमज्जेत्ता ततो संजयामेघ ठाणं वा सेज वा निसीहियं वा चेतेज्जा । (६४७) से ज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा अस्सिपडियाए' एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई भूताई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिचं अच्छेज्ज अणिसष्टुं अभिहडं आहट्ट वेएंति तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरगडे वा अपुरिसंतरगडे वा जाव आसेविते वा णो ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेज्जा । एवं बहवे साहम्मिया एगा साहम्मिणी बहवे साहम्मिणीओ । [६४८] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से ज्जं पुण उवरसत्यं जाणेज्जा ५ एतान् मुनीन् प्रतिज्ञाय. थोडां १ जणाय तेवा उपाश्रयमां जोइ तपासी प्रमार्जन करी त्यारपाद यतनापूर्वक त्यां स्थान शय्या के वेठक करवी. [६४७] वळी जे उपाश्रय मुनिओना माटेज बंधावेलो के राखेलो जणाय, जेमके, ते एक मुकरर समानधर्मी साधुना माटे जीवहिंसापूर्वक बंधायो होय या वेचातो लइ राख्यो होय अथवा भाडे राखेलो होय या झूटावी लइ राखेलो होय या मालेकनी रजा शिवाय राखेणे होय या ते तैयार थइ रहेतां तरत वीजा माणसनी वती मुनिना सामे जइ जणावेलो होय तेवो उपाश्रय अगर तेज देनार धणीए चणेलो हाय या वीजा पुरुपे चणेलो होय तेयज ते देनारे नहि वापरलो होय या वापरेलो होय तोपण तेमां मुनिए तथा आर्याए स्थान शय्या के बेटक नहि करवी. एज रीते घणा मुनिओने या एक आर्या के प्रणी आपाओने उद्देशीने करेला मकानमां पण नहि रहे. [६४८] मुनि अथवा आर्याए जे मकान पणापक ( युद्धमनी) श्रमण, ब्रामण, चन १ नदि जवा only for
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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