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________________ अध्ययल दसमुं. [२०७] गलं दलयाहि, मा अट्रियाई । ” से सेवं वदंतस्स परो आभहट अंतो पडिग्गहगसि बहुअद्वियं मंसं परिभाएत्ता णिहट्ट दलएज्जा; तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा परपायांस वा अफासुयं अणेसणिज्ज लाभे संते जाव णो पडिगाहेज्जा । से आहच्च पडिगाहिए सिया, तं णो "हि" त्ति वज्जा, णो “ अणहि " ति वइज्जा । से-त मायाए एगंत-मवकमेज्जा, [२] अहे आरासंसिवा अहे उवस्सयांसि वा अप्पंडए जाव अप्परांताणए मंसगं मच्छगं भोच्चा अट्रियाई कंटए गहाय से त मायाए एगंतसवक्कमेज्जा । अहे ज्झामथंडिलंसि वा जाव पमज्जिय (२) परिट्वेन्जा। [६३० से भिक्खू वा (२) जाव समाणे सिया, से परो अभिहट्ट अंतो पडिग्गहए बिलं वा लोणं, उभियं वा लोणं, परिभाएत्ता णहिट्ट दलएज्जा; तहप्पगारं पडिग्गहग परहत्थंसि वा परपायसि वा अफासुयं जाव आपो" एम कह्या नां पण गृहस्थ पोताना वासणमाथी तेवू बहु ठळियावाळू पुद्गल-गर्भ लावीने आपदा मांडे तो ते मुनिए तेमाज हाथमां के वासणमा रहेवा देयुं, ग्रहण नहि करवू. अगर कदाच गृहस्थ ते मुनिना पात्रमां झट नाखीदे तो सुनिए ते गृहस्थने कशुं नहि कहे, किंतु ते आहार लइ एकांत स्थळमा जइ जीवनंतु विगैरेथी रहित वाग के उपाश्रयनी अंदर देशीने ते भोगी टळिया अने कांटा निर्जीव स्पंडिलमा पुंजी प्रमार्जी परठवी आवदा. [३३० सुनिए गृहस्थना घरे भिक्षार्थे जइ [खांडविगेरे मांगतां] गृहस्थ पोताना बासणमांधी थोडंएक वीडळूण के दरिआइ लूण लइने आपदा माडे तो तेवू अप्रामुक लूण ते वासणमां के तेना हाथमांज रहेवा देवं. अगर आचितुं लेवाइ जाय अने हजु गृहस्थ बहु दुर रहेलो नहि होय तो ते लूण लइने तरतज मुनिए ते गृहस्थने बतादई के “हे आयुप्मन् या बेहेन, आ तमे जाणतां छतां दाधुंछे के अजाणता
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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