SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ জানি- কঙ্কা গান্ধব, . . . से मिणखू वा [२] गाहावइ कुल पिंडवायपडियार अणुविद्वे समाणे से जं पुणं जाणेज्जा असणं वा (8) सपवाए बा, पिंडणियरेसु शा, इंधमहेछ वा, खंदमहेछ बा, सहमहेछ बा, सुगुदरहेछ बा, भूतम्हे वा, जक्कमहेछ बा, जागमहल वा, शुभमहे का, देहयामहेच का, रुकमहेश्च वा, गिरिमहेषु वा. दरिनहेछु वा, अगडमहेस का, तडागमहेस का, सहमहेन्तु बा, दिनहेस वा, सरमहल का, सागरमहल वा, आगरमहेछु चा, अण्णतरेसका तरूपगार दिलवरूनेस महामहेतु बद्दमागोह बहवे समण-आहण अतिहि किवण-वणीमए एगातो उक्रवातो परिसिज्जा जो पहाए, होहिं, जाब संणिहिसंणिचयातो वा परिएलिजमाणे पहाए तहः सारं असणं वा [४] अपुरिसंतरकडं जाद को पडिग्गाहेजा (५४३) ।। अह पुष एवं जाणेज्जा, विष्णं जं तेसिं दायध्वं, अह तत्य झुं. जमाणे पेहाए गाहाबतिभारियं बा, गाहावतिभागणि घा, गाहालतिपुत्वं वा, गाहाशतिपूयं बा, सुहं श, धाति श, दास बा, दासिं दा, सम्मकर प्यारे गृहस्थना घरे मेलो भयो होय अथवा पिहोजन होय असदा इंद्र, S, , पळदेव, भूत, यक्ष, के सानो महोत्रूप होय अदवा स्तूप के चैत्यलो अहोल्लर होय अबका क्ष, गिरि, बूषा, तलाव, दह, नदि, स्लर, सागर के भाग से अपना एना जेपी गमे ते वाहतको पहोल्लक होर अरे देशी धमाएक - यादि] श्रम, प्रामण, अतिथि, हीन तथा भाटमारणो एक के अनेक शालयोची भोजन दलातु होप सने से भोजन मालेले शारे करेलु छत्ता हसु से मुहल्धोए वापरेलु न दोष को सेश साहारने शुरु गरे सुनीर द्वे माहार रो . [५४२] पन जो त्यो सुनिने एस जणाय के अपने ए भोजन आपवानुरुद्धं ते सने अपायु अरे हवे गृहस्थ लोको तेने पार तो अनि सुस्पनी बीने दया क्षेत्रने अथवा पुरयुधी के पुरवधूने या पाई, दास, के दालने पह
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy