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________________ [१६२] आचाराग- मूळ तथा भाषान्तर. एयं खलु तस्स भिक्खुरस वा भिक्खुणीए वा सोमग्गियं जं - सबहिं समिते सहिते सयाजए-त्ति बेभि [ ५३९ ] -23: द्वितीय उद्देश : ) A से भिक्खू वा [२] गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए, अणुपवि समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा (१) अद्भुमिपोसहिएस बा, अनुमासिएस वा, दोमासिएस वा, तेमासिएस वा, या उम्मासिएस वा, पंच मासिएस वा, छम्मा सिसुवा उऊस वा, उउसंधीसु वा, उउपरिय सु वा बहवे समण-माहण-अतिहि क्विण-वणीमगे एगातो उक्खातो' परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए, तिहिं उक्खाहिं परिए सज्जमाणे पेहाए, चउहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए, कुंभी१ उत्सवेषु २ पिठरकात्. साधु के साध्वीनं एज कर्त्तव्य छे के हमेशां सर्व पदार्थोंमां समभाव राखी ज्ञानदर्शन अने चारित्र साच्यतां थकां सदा उद्योगी थ वर्त्तनुं . [५३९ ] बीजो उद्देश. [ मुनिए अशुद्ध आहार न लेवो तथा जमणवारमां न ज ] गृहस्थना घरे ज्यारे अष्टमीना उपवासना उत्सवप्रसंगे अथवा अर्द्धमासिक, मासिके, द्विमासिक, चतुर्मासिक, छमासिक, उत्सवना वखते अथवा रुतुभोना अंत्यादने के आद्यदिवसे घणाएक [शाक्यादि] श्रमण, ब्राह्मण, परोणा, दीन, अने भाचरणाने एक के अनेक वासणोमांथी भोजन धीरसानुं देखवामां आवे "
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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