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________________ अध्ययल नवमुं. (१३५) उपधानशृतात्य नवम मध्ययनम् प्रथम उद्देशः] अहासुयं वदिस्सामि, जहा से सनणे भगवं उठाय; संखाय तंसि हेमंते, अहुणापव्वइए रीयत्था 191 ४६२) णोचेविमेण वत्येण, पिहिस्सामि तंसि हेमंते, से पारए आवकहाए, एयं खु अणुधम्मियं तस्स ।२। (४६३) १ ज्ञात्वा २ रीयतेस्म-विजहार इत्यर्थः ३ नचैवानेन ४ वस्त्रधरणं . .. .. अध्ययन नवसं. उपधानश्रु. पहेलो उद्देश. (महावीर स्वामिनो विहार ) . (हे जेवू, ) में जेम सांभळ्युं छे तेम कहुं छं के श्रमण भगवान [महावीरे दीक्षा लइने हेमंत रुतुमा तरतज विहार कर्यो. [४६२] . ... (तेमने इंद्रे एक देवदूध्य बन अपेखें हतुं पण) भगवाने नथी विचार्यु के ए दलने हुँ शियाळायां पहेरीश. ते भगवान तो जीवितपर्यंत परीपहोना सहनार हता. मात्र वधा तीर्थकशेला रिवाजने अनुसरीने तेमणे [ इंद्रे आपलं] वस्त्र धर्यु हतुं, [४६३]
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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