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________________ THE RAJGRIH (Now Behar) PARSVANATA TEMPLE INSCRIPTION (B) (1) प० मम श्रीपारवमायाम ।। मेय प्रोविपुत्ताघमामर गिरिस्येय स्थितिस्वीकृति पत्रमणिरमाभिरामभुमगाधीस्पटासस्यि ति । पादासीनदियस्पति गुमशनीकोक्ति पुप्पोद्गम मीसंपाय दवानुवाशितपरी पीपार हस्पद्रुमः १ (२) पत्र पोमुनिपुनसस्य मुषिमोसम्ममस फेवन पयामा नप रामतामणरासंपादिनमीमुमा । बरे पण्तिाप्यतमतिहरमी यानिमां समय प्रापु प्रशिकमधयादि भविमो वीराम मी रमा । २ (1) महामयफुमारमीणानिधम्पादिमा धना'। मर्यायसितिस भोगमुमो माता द्विपापि हि (५) या पीविपुतामिधोऽयमिधरो मार मामापिच पीनेन्द्र विदारभूपणपरी पूर्वाप रागास्तिो । यो लोकपि मिरियामिती मम्य मुपाते नृणां सोय रामगृहाभिधानमिद की: केन मस्तूमते " (५) ताप मंसारापारपारावारपरपापापणमण महामणी । पीरामग्रदमदासोय । गजेन्द्राकारमदापोतममारपीपिपुसगिरिविपुत मापीठे मस्त महोपातयफुत्रप्तामापिण्यमरोपिमंगरोविनसिपर सरोगे । मुरपापमोवादिपेरोने मदीमनुगामगि । दीप- मियोगाम्म गधेपु मनिफरयोना मरहतेश्वरसमपे। तदीयमेवफ मद म दादीन सादाम्पेन । पादाय मिर्गय पमिगुणि रंग मामां। एमोक्तिकानिरत कुरुते मुराम्प पर भुती पपि गिर गत पुतारा मोय विमाशि मुधि मंत्रिदातोष ग (C) देणे मुत्र पवितधो मदमपातापा पुमुण्म सा नम्प ममानसदगु मयागारिमांग पुरासम्मनुमा नमस्तुग्गिनुपाति प्रतीतो भव समारम्प कुते पुधागुभवले पदामिधामो धमोर
SR No.011094
Book TitleSome Distinguished Jains
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmrao Singh Tank
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages95
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size3 MB
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