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________________ विदेशी विद्वानों द्वारा जैन साहित्य का अध्ययन व अनुसन्धान डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री यद्यपि पश्चिम देशोमे अनुवादोके माध्यमसे सस्कृतका परिचय सोलहवी शताब्दीके अन्त तक हो चुका था, किन्तु पालि-प्राकृतका अध्ययन भाषाके रूपमे भी अठारहवी शताब्दीसे पूर्व नही हो सका। इसका कारण यही था कि उस समय तक पालि-प्राकृतके साहित्यको कोई जानकारी यूरोपको नही थी। सस्कृतकी ओर भी पूर्ण रूपसे विद्वानोका ध्यान आकृष्ट करनेका श्रेय सर विलियम जोन्सको है। प्राकृतके अध्ययनका सर्वप्रथम उल्लेख चार्ल्स विल्किन्सके 'अभिज्ञानशाकुन्तल'के अध्ययनके साथ मिलता है। इस मासीसी विद्वान्का यह महान् स्वप्न था कि सस्कृत और प्राकृतके साथ शकुन्तला नाटकका सम्पादित सस्करण मेरे द्वारा प्रकाशित हो, परन्तु इस प्रकारके अध्ययनसे प्राकृत भाषा और उसके साहित्यकी कोई जानकारी तब तक नहीं मिल सकी थी। प्राप्त जानकारीके प्राधार पर हेनरी टामस कोलवुक (1797-1828 ई०) प्राच्य-विद्यामोके गम्भीर अध्येता थे, जिन्होने सस्कृतके साथ प्राकृत भाषा, संस्कृत-प्राकृत छन्द शास्त्र, दर्शन, जैनधर्म, बौद्धधर्म मादि पर विद्वत्तापूर्ण निवन्ध लिखे थे। वास्तवमे आधुनिक युगमे प्राच्य विद्यामोके क्षेत्रमे जैन साहित्यके अध्ययन व अनुसन्धानका प्रारम्भ जैन हस्तलिखित ग्रन्थोकी खोजसे प्रारम्भ होता है। उन्नीसवी शताब्दीके प्रारम्भमे बम्बईके शिक्षा विभागने विभिन्न क्षेत्रोमे दौरा करके निजी सग्रहोके हस्तलिखित ग्रन्थोका विवरण तैयार करनेके लिए कुछ अन्य विद्वानोके साथ डॉ० जे०जी० बलरको भी नियुक्त किया था। 1866 ई० मै डॉ० बूलरने बलिन (जर्मनी) पुस्तकालयके लिए पांच सौ जैन ग्रन्थ खोजकर भेजे थे। उस समय सग्रहके रूपमे क्रय किये गए तथा भाण्डारकर शोध-संस्थानमे सुरक्षित उन सभी हस्तलिखित ग्रन्थोके विवरण आवश्यक जानकारीक रूपमे 1837-98 ई० तक समय-समय पर भाण्डारकर, डॉ० बूलर, कीलहान, पीटर्सन और अन्य विद्वानोकी रिपोर्ट प्रकाशित हो चुकी हैं। प्राच्यविद्याजगत्मे यह एक नया आयाम था, जिसने जैनधर्म व प्राकृत भाषा एव साहित्यकी ओर भारतीय व विदेशी विद्वानोका ध्यान आकृष्ट किया। स्वय डॉ. बूलरने 1887 ई० मे अपने शोध-कार्यके माघार 71
SR No.011085
Book TitlePerspectives in Jaina Philosophy and Culture
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kamalchand Sogani
PublisherAhimsa International
Publication Year1985
Total Pages269
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size12 MB
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