SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णरोग निवारण मन्त्र : "ॐ ह्रीं अहं णमो प्रणतोहिजिणाणं कर्णरोगविनाशन भवतु ।।" श्वास रोग निवारण मन्त्र : "के ही अहं णमो सभिण्णसोदराणश्वासरोगविनाशन भवतु ॥" ज्वरनाशक मन्त्र : "ॐ ह्री अहं सर्व ज्वर नाशय नाशय के णमो सर्वोषधि पत्ताण ही नम ।" प्राधाशीशी नाशक मन्त्र : ॐ ह्री परमोहिजिणाण के ह्रीं क्रो को इत्रों स्वाहा । चोर भय हरण मन्त्र : ॐ णमो अरहताण प्राभिणी मोहिणी मोह मोह्य स्वाहा ।" बिच्छ विष निवारण मन्त्र : तीर्थकर पार्श्वनाथ प्रसादात् एष योग फलतु । मत्र-मां के खं स्वाहा अथवा ऊँ पक्षिस्वाहा । मेघवृष्टि कारक मन्त्र : ___"ॐ नमोहल्व्यू मेघ कुमाराण के ह्रीं श्रीं नमो स्म्ल्व्यू मेघकुमारा ण वृष्टि कुरु-कुरु ह्रीं सवोषट् । मेघवृष्टि स्तम्भक मन्त्र : "ॐ ह्रीं श्रीं सो क्षक्ष मेघकुमारकेभ्यो दृष्टि स्तम्भय स्वाहा । अग्नि शमन मन्त्र : "ॐ णमो के अहं प्रसि मा उ सा णमो अरिहताण नम ।" उपर्युक्त मत्रो का प्रभाव साधक के द्वारा एक निश्चित मार्ग का अवलम्बन करने पर ही होता है। पौष्टिक मन्त्र : ___ जिन ध्वनियो के वैज्ञानिक सरचना के घर्षण द्वारा सुख-सामग्रियो की प्राप्ति अर्थात् जिन मत्रो के द्वारा धन-धान्य, सौभाग्य, यशकीति, बुद्धि तथा संतान प्रादि की प्राप्ति हो उन ध्वनियो की सरचना को पौष्टिक मत्र कहते हैं। ऋद्धि-सिद्धि प्रहं मन्त्र : “ॐ ह्रीं णमो अरहतारण मम ऋद्धि वृद्धि समीहित कुरु कुरु स्वाहा । विधि -शुद्ध होकर प्रतिदिन प्रात साय 108 बार मत्र का जाप करें तो सर्व प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है। 22
SR No.011085
Book TitlePerspectives in Jaina Philosophy and Culture
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kamalchand Sogani
PublisherAhimsa International
Publication Year1985
Total Pages269
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy