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________________ अन्त मे यह कह देना भी मावश्यक है कि जो लोग छायावाद और रहस्यवाद को लगभग समानार्थक मानते हैं उनका कथन सही नहीं है। छायावाद मूलत एक साहित्यिक प्रान्दोलन रहा है जबकि रहस्यवाद की परम्परा धाद्य परम्परा रही है इसलिए रहस्यवाद छायावाद को अपने सुकोमल अग मे सहज भाव से भर लेता है । एक असीम है, सूक्ष्म है, श्रमूर्त है, जबकि दूसरा ससीम है, स्थूल है मोर मूर्त है रहस्यभावना मे सगुण साकार भक्ति से निर्गुण निराकार भक्ति तक साधक साधना करता है पर छायावाद मे इस मूक्ष्मता के दर्शन नहीं होते । न्यू एक्सटेंशन एरिया मदर, नागपुर (महाराष्ट्र) अहिंसा, सयम श्रीर तप धर्म है। इससे ही सर्वोच्च कल्यारण होता है। जिसका मन मदा धर्म मे लीन है, उन मनुष्य को देव भी नमस्कार करते हैं। (दशवेकालिक, 1 ) मव ही जीव जीने की इच्छा करते हैं, मरने की नही, इसलिए सयत व्यक्ति उस पीडादायक प्राणवध का परित्याग करते हैं । (दशकालिक 273 ) जो व्यक्ति कठिनाई से जीते जानेवाले सग्राम मे हजारो के द्वारा हजारो को जीते और जो एक स्व को जीते इन दोनो मे उसकी यह स्व पर जीत परम विजय है । 1 (उत्तराध्ययन, 262) तू अपने मे धतरग राग-द्वेष से ही युद्ध कर, जगत् मे बहिरग व्यक्तियो से युद्ध करने से तेरे ส लिए क्या लाभ ? सच है कि अपने में ही अपने (राग-द्वे प ) को जीत कर सुख बढता है । (उत्तराध्ययन, 263) 13
SR No.011085
Book TitlePerspectives in Jaina Philosophy and Culture
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kamalchand Sogani
PublisherAhimsa International
Publication Year1985
Total Pages269
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size12 MB
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