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________________ APPENDIX A तम्हि धणम्हिय भाउ णहि एयस्लावि दायस्त । सप्पयाइ णिप्पयाइंहिं हवे विसेसोय मादुये समयं ॥४॥ तजासुय भइणिसुया ण कोबि तस्सा णिबार होई। जो सुदभाइ भतिजउसक्खी किय जंपरस्सुधण दिण्णं ॥४९॥ तस्सहि कोउ णिसिद्धाण होइ किमु वा बिसेसेण । साक्खी विणाय दिणणं ण धणं तस्सावि होइ णिबियदो॥५०॥ जादे दिग्धविबादे तस्सेब धणं धुबं हाई। एवं दायबिभायं जहागमं मुणिबरेहिं णिदिलें ॥५१॥ तं खु ववहारादी इयलायभवंहि णादब्बं । धम्मो दुबिहो सावय आयारो धस्म पुच वो पढमं ॥५२॥ दुदिउ बउ पजुत्तो मूलं पाक्खिगमउ सोचो। भरहे कोसलदेसे साकये रिसह देव जिणणाहो ॥५३॥. जादो तेणेउ कम्मवि भूमे रयण समुदिट्ठा । तस्ल सुदेण य चक्क पठिणा भरहराय संगण ॥५४॥ आयार दाण दंडा दायबिभाया समुदिट्ठा । वसुणदि इंदणंदिहि रचिया सा सहिदा पमाणाहु ॥५५॥
SR No.011057
Book TitleJaina Law Bhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages146
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size5 MB
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