SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दो शब्द श्रमण-जैन धर्म अहिंसा के सन्देश और साधना के लिए प्राचीन काल से मानवजाति की सेवा करता पा रहा है। तथापि खेद है कि जन-धर्म के उदार सिद्धांतों, पवित्र विचारों, मौलिक मान्यताओं और अनुकरणीय चारित्र का अद्यावधि पर्याप्त और ठोस प्रचार नहीं किया जा सका । यही कारण है कि स्कूल-कालेज तथा विश्वविद्यालयों में निर्धारित पाठय पुस्तकों में जैन धर्म को लेकर अनेक प्रकार की भ्रान्त धारणाओं का प्रचार किया जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक 'Introduction to Jainism' का निर्माण इसी उद्देश्य को लेकर किया गया है जिससे जनों को अपने धर्म का परिचय मिले तथा जनेतर भी इस उत्तम धर्म की विशेषताओं से अनभिज्ञ न रहें । मूल पुस्तक 'मराठी' में है, जिसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद देशभक्त श्री प्राण्णासाहव लट्ठ जी ने किया है। यह अनुवाद ई. स. १९०५ में प्रथम बार प्रकाशित हुमा था, जिसका यह द्वितीय संस्करण भारत की प्रमुख साहित्यिक संस्था जैन मित्र मण्डल, धर्मपुरा दिल्ली के द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है। मंडल का यह प्रयास वास्तव में उपयोगी है । इस पुस्तक के प्रकाशन को अत्यन्त प्रावश्यकता थी। पुस्तक का वह प्रकरण जिसमें 'स्याद्वाद' को चर्चा की गई है, पाठक के हृदय में यह छाप छोड़े बिना नहीं रहेगा कि युद्ध एवं शस्त्रों का उत्तर हिसा नहीं, अहिंसा है । और परमतसहिष्णुता की शिक्षा भी इस पुस्तक से मिलेगी। मंग्रेजी भाषा के साहित्य को समृद्ध करने वाले तथा 'को प्रॉफ नॉलेज' (Key of Knowledge) जैसी उत्कृष्ठ रचना के लेखक बैरिस्टर चम्पतराय अन : की श्रद्धा में इसी पुस्तक से अभिवृद्धि हुई थी। यह पुस्तक अपने 'मिदान' में अधिकाधिक सफलता प्राप्त करे यही हमारी हार्दिक शुभाशंसा है। ~~-विद्यानन्द मुनि वृषभ निर्वाण माघ वद्य १४ दिनांक १३.१.६४
SR No.011049
Book TitleIntroduction to Jainsim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDewan Bahadur A B Lathe
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year
Total Pages89
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy