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________________ ( १५ ) महाभात ग्रन्थ । मद्यमांसाशनंरात्रौ भोजनं कन्दभक्षणं । येकुर्वति बृधातेषांतीर्थयात्राजपस्तपः ॥ अर्थ--जो कोई मदिरा पीता है मांस खाता है यारात्री को भोजन करता है या कन्द [ धरती के नीचे जो बस्तु पैदा हुई आलू अद्रक मूली गाजर आदिक ] खाता है उस पुरुष का तीर्थयात्रा जप तप सब वृथा है || मार्कंडेयपुराण | अस्तंगतेदिवानाथे अपोरुधिरमुच्यते । अन्नमांस समंप्रोक्तं मार्कंडेय महर्षिणा ॥ अर्थ -- सूरज के अस्त होने के पीछे जल रुधिर समान और अन्न मांस समान कहा है ॥ भारत ग्रन्थ । चत्वारोनरकद्वारं प्रथमंरात्रिभोजनं । परस्त्रीग मनचैव संधानांनंतकायकं ॥ येरात्रौ सर्वदाहारं बर्ज यंते सुमेधसः । तेषां पक्षोपवासस्य मासमेकेनजायते । नोदकमपिपातव्यं रात्रावत्रयुधिष्टरः । तपस्विनोवि - शेषेण गृहीणांचबिलोकिनां ॥ अर्थ-नरक के चार द्वार हैं प्रथम रात्रि भोजन करना दूसरा परस्त्री गमन तीसरा संधाना खाना चौथा अनंत काय अर्थात् कंद मूल आदिक ऐसी वस्तु खाना जिस में अनंत जीवहों। जो पुरुष एक महीने तक रात्रि भोजन न करे उसको एक पक्ष के उपवास का फल होता है । हे युधि
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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