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________________ (१३) ऽस्यवामनः ॥ कलिकालेमहाघोरे सर्वपापप्रणाश नम् । दर्शनात्स्पर्शनादेव कोटियज्ञफलप्रदम् ॥ अर्थ--शिवजी के पश्चिमभाग में बामन ने तप किया था। उस तपके कारण शिवजी वामनको प्रत्यक्ष हुए किस रूपमें प्रत्यक्ष हुवे कि पद्मासन लगाये हुवे श्यामबरण और नग्न तव बामन ने इनका नाम नेमिनाथ रक्खा । यह नाम इस भयंकर कलियुग में सर्व पापोंको नाश करने वाला है और इनके दर्शन वा स्पर्शन से करोड यज्ञ का फल होता है। भावार्थ--श्रीनेमिनाथ भगवान भी जैनियों के तीर्थंकर हैं और जैनधर्मके ग्रंथों में भी उन्का वरणश्याम लिखा है। इस प्रभास पुराण में उनको शिवजीका अवतार और नग्नअवस्था वर्णन करकै प्रशंसा की है। वाराही संहिता। ___ आजानुनंबाहुकार्यः श्रीवत्सांकप्रशांतिमूर्तिःजि तेंद्रियदिगवासातरुणरूपवानइहशीप्रतिमाकार्या॥ अर्थ-गोड़ेतक लम्बी भुजा और श्री वत्स चिन्ह छाती मैं शांतिमूर्ति राग दोष रहित नग्न तरुण अवस्था रूपवान ऐसी मूर्ति वनानी चाहिये। भावार्थ--यहां ऐसीही नग्न मूर्ति बनाने की आज्ञा की है जैसी जैनी लोग बनाते हैं। ऋग्वेद। . ओपवित्रंनग्नमुपविप्रसामहेयेषांननाजातिर्येषां बीरा॥
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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