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________________ भूमिका। प्रगट होकि संसारी पुरुष मोह वश होकर अनेक प्रकारके दुख भोगते हैं ।। संसारके ममत्वसे छूटकर निज आत्म स्वरूप, मग्न होनेस यह दुःख दूर होते हैं और परम आनन्द प्राप्त होना ।। संसारस ममन्त्र छूटनेका उ. पाय यहही होसक्ताई कि संसारकी सर्व प्रकारकी परिग्रहको त्यागकर अ. भोट नम अवस्था धारण कर अपनी आत्मामे ध्यान लगाया जावै । इस उपायसे अनेक भव्यमन संसारके दुःखों से छूटकर मुक्तिको प्राप्त होगयेहैं।। हम संसारी पुरुष अनेक पापाम फँस हवह हमसे सर्वथा परि ग्रहका त्याग नहीं होसक्ताहै इमही हेतु ममत्व न नके कारण हमसे आत्मीक ध्यान नहीं होसक्ताहै || हम केवल यहही करसक्त हैं कि पाप रूप रागको छोड़ कर ऐमे महान पुरुषोंकी पत्ती और गुणानु बाद मैं राग लगवाई जोयुक्ती को प्राप्त होगये हैं उनकी वैराग्य नन अवम्धा का ध्यान करें जिससे हमारे परिणामभी परिग्रहके त्यागनेकी और लग ॥ जैनी लोग ऐमेही महान् पु रुपांकी नम मर्ती अपने मंदिगेम रखतहैं और नित्य उनके दर्शन कर वैरा ग्य अवस्था का ध्यान करते हैं । मोह आदमीको अंधा करंदताहै इसके होते हुवे भले वर और सत्य अपत्यका विचार नई रहनाहे इसही के कारण क्षपान पैदा होताहे ॥ यह पक्षपात् दुसरे पुरुषों के कार्यों में चाहे वह कार्य कैसेही नाभ दायकहों अरुचि पैदा कराता है और उन कार्यों की निंद्याकर ने पर उद्यधी होताहै || कालवश संसारमैं अज्ञान अंधकार अधिक फैलगया है और मोक्ष प्राप्तीका उपाय प्राया जाताही रहाहै । और घटते घटते यह दशा होगईहै कि उन महान् पुरुषोंकी भक्ती भी कम होगई जिन्होंने संसारी क परिग्रहको त्यागकर आत्म शुद्धीकी है ॥ वह मारग जिससे मुक्ति प्राप्त होतीहै जैन धर्म अर्थात भगवान भाषित धर्म कहलाता है और इस धर्म के श्रद्धानी जैनी कहलाते हैं ।। यद्यपि सारमें अधिक अंधकार होगया और जनियोंके आचार भी अन्य मतवालों केही समान भृष्ट होगये हैं परन्तु अब तक जैनियों में परिग्रह त्यागी महान पुरुषों की भक्ती चली जाताह इस का रण वह उन महान पुरुषों की परिग्रह रहित नग्न मूर्ति बनाते हैं और नित्य दर्शन करतेहैं परन्तु महान शोक और आपकी बात है कि हमारे हिन्दू
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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