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________________ ॥ भूमिका ॥ सर्व साधारण को विदित किया जाता है कि यह “रत्न परीक्षक" नामी पुस्तक जिसमें ८४ प्रकार के गंगों के अतिरिक्त और भी कितने ही प्रकार के संगों का वर्णन है अनेक ग्रंथों और जौहरीयों की सम्मति पूर्वक रचीगई है इस पुस्तक का लाभइमको आयोपान्त नक पहने से ही मालूम होसक्ता है। जौहरीयों के सहारे की लकड़ी तो यह हैई पर नवशिक्षित जौहरी यों को अति ही उपकारी है और जो महाशय मंग परीक्षा से बिलकुल अनिभिज्ञ हैं उनको भी यह पुस्तक विशेष लाभ कारक है - प्रथमवार हमने इस विषय में एक छोटी सी पुस्तक बनाकर ही अपना उन्माहर गट किया है, अब यदि शुभचिन्तक महाशय अनुग्रह की दृष्टी से देखेंगे और ग्राहक होने को उत्साह प्रगट करेंगे तो आगानी इससे भी बड़ी और उपकारी पुस्तक बनाकर आपके भेट की जायगी. यदि इस पुस्तक में कोई भूल होगई हो तो गुण ग्राही महाशय कृपादृष्टी मे मुझको मुचि त करदें ताकि दुमरीवार के मुद्रित होने में उस भूलकी सफाई करदी जाय ॥ शुभं । पुस्तक मिलने का पता दफ्तर जैन गजट या मैनेजर मुदर्शन यन्त्रालय मथुरा. सर्वसाधारण का शुभचिन्तक घासीराम
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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