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________________ । रतन परीक्षक। ॥ पश्चम तूंनस सहर अपार । दरआउो वीच मूंगा मन शार॥ ॥फिरंगस्तान तर्फ सो जांनो । सदाननग के पास पछानो। ॥दोहरा॥ ॥ अवर हिमाले देसमें । उत पत मूंगा जॉन ॥ ॥मान सरोवर आदि में। गहरा रंग पछांन॥ ॥चौपई। ॥ जलाई में जड निकलत सीई । साखावत आछादित होई ।। ॥ी मार काट कर ल्यावे । वाहिर पत्थर तोल दिखावे ।। ॥ सता नेत्र वत लाल दिखावे । सुंदर कोमल स्निग्ध सुहावे॥ ॥ वन में सुख नरम विचारो । विप्र वर्ण मूगा मन रों॥ ॥ सिर अनार पुन्यवन जोई। कनेर रंगवत चमकत सोई॥ ॥ वन में अति कठिन दिखावे । सो मूंगा क्षत्री लख पावे ।। ।। पलासपाटलीपुष्प विचारो। स्निग्यचमक विनवेश्यसम्हारो॥ लाल कमल बत चमकन होई। कृश्न वर्ण का मानो सोई॥ ॥ थोडे दिन तक चमक रखावे । शूद्र नाम मूंगा लख पावे ॥ ॥ उत्तम लाल रंग मन पारे । सुंदर कोमल स्निग्धविचारे । ॥ अथवा रंग गुलावी माने । सो उत्तम मूंगा शुभ जाने । ॥ निर दोष होए भरे लर सोई। धन अरु धान्य वृद्धि कर होई॥ ॥ रंग ढंग विन बहुग जानें । सी आपद का कारण माने ॥ ॥ दूसर रंग छिटक वत होई। त्रास काक पद तजिए सोई ।। ॥ कामल सुंदर रंग विचारे । सो उत्तम विंव रोग निवारे ॥ ॥ स्याह रंग मूंगा जो होई। हकीकुलबहर नाम कहु सोई॥ ॥ तसवी सुंदर ताहि वनावे । मूले छत्रनादि मन वांछित पावे ॥ ॥ कोटी आदि दोप जो होई । विना रंग खहुरा लख सोई॥ ॥विन सूरत मूंगो शुभ नाई। ऐसें कहा गूथ मत माई ।। ॥ यज्ञ समान दोष गुण जाने । उनम लग्व उत्तम गुणमाने ।।
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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