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________________ । रतन परीक्षक। ॥ मुर्गे वत आभा दर सावे ॥ अति रक्त दोष मृत्यू कर गावें।। ॥ विना चमकसौजठरपछांनौ। दरिद्री रोग आपदा मानो ॥ ॥ रेखा तीन गिर्दे होई। निवृत्त दोष भय दायक सोई॥ ॥ सुख सौभाग्य संपदाह रहे । जाप्रकार निश्च गुणा रहे॥ ॥ चिपट नाम गोल नही जानो। विन स रत वदनामी मानों ।। ॥ त्रिकोण होएसौ विधकहावे। सख संपत सौभाग्य नसावे॥ ॥ लंबा सौ कृश नामवखाना ! बुद्धि होन कर गुण पहिचाना।। ॥ टूटा शो कृा पाश्व कहा। मावाछित सभ दूरन सावे ।। ॥ ऊन अधिक साफ नहि होई । असोभन दोष गैग कर सोई॥ ॥ जाप्रकार दोष दस जानो। आयून सन्तात हरि मानी । ॥ कृत्रिम होत भेद सुन सोई। मानो असली माफक हाई॥ ॥ ताहि परीक्षा जाविध जाना। प्रभात स.र्य के सनमुखमानो। ॥दोहरा ॥ ॥ कपडा एक वरोक ले माती चावल पाय ॥ ॥शरज कर मरदन करे असलीचमक दिखाय ॥ ॥ टूटजाय झूठालखो अथवा चमक न होय ॥ ॥ जाविध निश्चा कीजिये संग्रह करिये सोय ॥ ॥चौपाई॥ ॥ अथवा लूंण गूत्र में पावे ।मोती पाय सो गर्म करावं । ॥ फुनि निकाल मोतीसौ लीज । छिलका धोन ताह मै दीजे । मर्दन करें जिला प्रघटावे ।झूठा होय जिला तजिजावे ॥ देहरो॥ । अथवा मछली पेटमें मोती दूर सराव ॥ ॥ गर्म करे जल पयक । निश्चै प्रघटे आव ॥ ॥ कपडे सो मरदन करे । असली चमके सोय ॥ ॥ टुट जाय झूठा तऊ । अथवा चमक न होय ।।
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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