SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्मपर व्याख्यान. - गये, यहांपर उस बालकके वचनानुसार यथार्थमें अपनेको साधुमार्गी अथवा मठमार्गी (थानकपंथी) १२ वर्षका दुप्काल पड़कर लोक चटापट मरने | कहते हैं; कारण ये लोक प्रायः मठोंमें रहते हैं. लगे. तब भद्रबाहु के १२०० शिष्योंको किसीने यह पंथ बहुत विचित्र है, ये मूर्ति वगैरह नहीं मिक्षा नहीं दी, तो उन्हें निरुपाय हो अपनी नग्न मानते; अर्थात् इन लोगोंको मन्दिरोंकी आवश्यस्थिति छोडकर इतर लोगोंके समान वस्त्रधारण कता नहीं है. मनोविकारोंका दमन करना यही कर रोटीपानीका उद्योग करना पड़ा. दुष्कालकी बड़ा धर्म है, ऐसा वे समझते हैं; और इस धर्मका १२ सालें पूरी होनपर भद्रबाहु वापिस आकर चिन्तवन यही उसकी मानसपूजा है, तीर्थकरोंके देखते हैं तो अपने शिष्योंको श्रेत वस्त्रग्रहण किये पवित्र आचरणोंका अनुकरण करना ऐसा वह हुए पाया, तब इन्होंने अपना धर्म छोड दिया कहते हैं, परन्तु तीर्थकरोंको कुछ विशेष मान ऐसा समझकर वे अपने १२०० नग्न शिष्योंके देनेकी प्रथा उनमें नहीं है. उनके गुरु शुभ्रवर्णके सहित उनसे अलग रहने लगे, श्वेताम्बरियोंके ! परन्तु कुछ मैले वस्त्र पहिनते हैं, स्वासोच्छाम मतसे भद्रबाहुकी मृत्युके पश्चात् ६०९ वर्षस क्रिया उष्ण वामसे वायुकायके जीवन मरें यह दोनों पंथ अलग हुए. अस्तु. दिगम्बर व इसलिये मुखपर कपड़ेकी एक पट्टी बांधते हैं व श्वेताम्बर इन दोनोंके आचरणोंका भेद ऊपर रस्ता चलते पादनहारसे जीवजन्तुओंकी प्राणहाणि मगह जगहँ दिखलाया ही है. श्वेताम्बरियोंके न होवे इसलिय झाइमकेलिये हाथमें एक नर्ममन्दिरोंमें हिन्दुओंके तो क्या मूसलमानों के परि कूच लेकर फिरते हैं, इस कूचकों रजोहरण, शारीफतककी मूर्तियां रहती हैं. पूजन कहनेको कहते हैं, इसीके 'कटामन' अथवा 'ओघा' उनके यहां ब्राह्मणका चलन हैं, वे १२ स्वर्ग ऐसे भी नाम हैं. ये लोग सारी जिन्दगीमें कभी मानते हैं; उनके गुरु वस्त्रपरिधान करते थाली- स्नान नहीं करते; हजामत नहीं कराते; हाथसे पात्रादिकोंमें भोजन करते हैं. वे स्त्रियोंको केश उखाने हैं. इनका निवास मठोंमें रहता मोक्ष होना मानते हैं, यज्ञोपवीत नहिं डालने है। इन मठोंको थानक कहते हैं. इस पंथमं शिपरन्तु पूजनके समय रंगा हुवा मूत व रेशम क्षित लोगोंकी संख्या बहुत ही थोड़ी है, संजनेऊ सरीखा गलेमें डालते हैं. उसे उत्तरासंग स्कृत भाषाके जैनधर्मी ग्रन्थोंक समझने योग्य कहते हैं. विद्वत्ता शायद एक दोहीके अंगमें होगी; जिन श्वेताम्बरोंमें ही दूंढिया नामक एक शाखा है. सत्रोंका गुजराती भाषान्तर हो चुका है इन लोगोंका उल्लेख ऊपर अनेक इंढिया जैन- जगहँ आया है. इन्हींका माल उन्हींको घोक २ कर वे अपना निर्वाह करते हैं. ___ वामें शेवड़े नाम है. परन्तु ये स्वतः इनमें स्त्रियोंको भी आजन्म ब्रह्मचर्यसे र. (२) भद्रबाहू के वापिस आनेका उल्लेख कहीं भी हनेकी आज्ञा है, स्त्रियां भी श्वेत परंतु कुछ मैले नहीं मिलता. किन्तु वे दक्षिणमें ही श्रवणबेलगुलके पर्व पर परलोकको प्राप्त हुये ऐसा वहांके शिलालेखोंपर में विदित होता है, रखकर द्वार द्वार फिरती हुई नजर आती हैं..
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy