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________________ नैनधर्मपर व्याख्यान. - (जैनधर्मका साहित्य वा शासन ) भी प्राचीन- प्राचीन कालके भारतवर्षीय इतिहासमें जैनियोंने कालमें अत्यन्त सुसम्पन्न स्थितिको प्राप्त होकर अपना नाम अजरअमर कर रखा है. अर्वाचीन वर्तमानमें दुर्दशाप्रस्त हुआ दिखाई देता है. | समयमें जैनी मात्र राज्यसत्ता अहिंसातत्त्वके प्राचीन जैनवाङ्मय संस्कृत वाङ्मयके कारण छोड़ बैठे हैं तथापि समाजमें प्रेसीडेण्टका प्रायः बराबर था. धर्मशाम्युदय महा- | स्थान उन्होंने अद्यापि छोड़ा है ऐसा नहीं है. वकाव्य, हम्मीर महाकाव्य, पार्धाभ्युदय काव्य र्तमान शांतिताके समय व्यापारवृद्धिके कार्यों में यशतिलकचम्यू वगैरह काव्य ग्रन्थ, जैनेन्द्र अग्रसर होकर इन्होंने अपना वर्चस्व (प्रताप ) व्याकरण, काशिकावृत्ति व पंजिका रम्भामंजरी पूर्ण रीतिसे स्थापित किया है और वर्तमानमें नाटिका, प्रमेयकमलमार्तड सरीखे न्यायशा- समाज सुधारणा विषयक जागृति भी हुई स्त्र विषयक अन्य, हेमचन्द्र सरीखे कोश, व दिखती है. गत जैनपरिषदके अधिवेशनके समय इनके शिवाय जैनपुराण, धर्मग्रन्थ जैन इति- हमारे जैनबंधुओं का समाज सुधारणा व धर्महास ग्रन्थ आदि असंख्य शास्त्रे थे. इनमेंसे शिक्षणके विषयमें जो उत्साह दृष्टिगत हुआ अभी बहुत थोड़े प्रकाशित हुये हैं. और सैकड़ा था वह सर्वथा अभिनंदनीय था इसमें शंका ग्रन्थ अभी अज्ञात हो रहे हैं, अपने ग्रन्थ छापे | नहीं है. नहीं जावे कारण छापना यह एक अपवित्र पृथिवीके अन्य किसी भी धर्मके सम्बन्ध क्रिया है, ऐसी अज्ञानताकी समझके कारण लोग ____ लोगोंकी इतनी विअपने पासके प्राचीन ग्रन्थ व लेख छापनेको नहीं लोगोंकी अनभिज्ञता. देते हैं. इन संस्कृत ग्रन्थोंके अतिरिक्त अन्य | है जितनी जैनधर्मप्रकारसे भी जैनियोंने वाङ्मयकी बड़ी भारी के विषयमें हो रही है. हमारे देशमें अनुमान सेवा की है. दक्षिणमें तामिल व कानडी (क-२४०० वर्ष पूर्वसे यह धर्म प्रचलित है व र्णाटकी ) इन दोनों भाषाओंके जो व्याकरण प्र- हमारे जैनबांधवोंके पूर्वज प्राचीन कालमें ऐसे २ थम प्रस्तुत हुए वे जैनियोंने ही किये. ऐसा स्मरणीय कृत कर चुके हैं तो भी जैनी कौन है ! "मिसेस एनीविसेप्ट" का कहना है. सारांश उनके धर्मके मुख्य तत्त्व कौन २ से हैं ? इसका जिस प्राचीन पाणिनीय व्याकरणने तीन जगह | परिचय बहुत ही थोड़े पुरुषोंको होना बड़े आमत प्रहण किया है वह शाकटायन व्याकरण भी जैना- श्वर्षकी बात है परन्तु इसका कारण वेदमतावचार्यकृत है. तथा और भी अनेक जैन व्याकरण हैं. लम्बी और जैनियोंमें उपस्थित हुआ द्वेष ही होगा २ नाटक, काव्य, साहित्य, कोश, न्याय, वेदान्तके ऐसा जान पड़ता है. "न गच्छेज्जैनमन्दिभनेक ग्रन्थ अभी मौजूद हैं. ३ करणाटक भाषाका बहुत बडा ब्याकरण रम्" अर्थात् जैनमन्दिरमें प्रवेश करने मात्रमें भष्टाकलंक देवका बनाया हुवा 'रैस' साहबने छपाया | १ स्वेताम्बर जैनकानफरैन्स थी. दिगम्बरजैनकानभी है. परन्तु वह सब विलायतके विद्याविलासियोंने | फरेन्स (महासभा) पृथक् है. वह मधुरामें प्रतिवर्ष मंगा लिया. इस देशमें मिलना अब दुर्लभ है. इकट्ठी होती है. जैनधर्मके सम्बन्धमें हम चित्र अजानता नहीं
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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