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________________ जैनधर्मपर व्याख्यान. - हम सबको अवगत है ही. शिवके उपासक 'मता कालेनान खण्डे मारते विक्रमात्पुरा। शैव, विष्णुके उपासक वैष्णव, इसीप्रकार बुद्धके खमुन्यंभोधिविमते वर्षे वीराजयो नरः ॥२॥ अनुयायी सो बौद्ध कहाते हैं अब ऊपर | प्राचारयज्जैनधर्म यौद्धधर्म समप्रभम् । वर्द्धमान. निर्दिष्ट किये हुए देवोमें वर्द्धमान इसपरसे विक्रम संवत्से ४७० वर्ष पूर्व अथवा अवशिष्ट रहे. इनके विषयमें अद्या- इन्होंने जैनधर्मका प्रचार किया, ऐसा दिखता महावीर. पि अभीतक कुछ अधिक इतिहास है. वर्द्धमान अथवा महावीरके चरित्रका उपलब्ध नहीं हुआ है तथापि ये जैन समा- इससे अधिक परिचय उपलब्ध नहीं है. तथापि जके अत्यन्त पूज्य तीर्थकर अर्थात् आदर्श इन्होंने जिस जैनधर्मका प्रचार किया व जो धर्म पुरुष हो गये हैं. और जैनधर्मकी स्थापना करनेवाले बौद्धधर्मसमप्रभम् (बराबरीवाला) था. ऐसा ऊपरके चाहे न हों, परन्तु उसके प्रचार करनेका श्रेष्ठत्व श्लोकमें कहा है, वह जैनधर्म अद्यापि विद्यमान बहुतसा इनके ही तरफ जाता है, यह कहना भी है. हिमालयसे लेकर कन्याकुमारीपर्यंत किंबकुछ अनुचित न होगा. ये काश्यप गोत्री क्षत्री थे हुना उससे भी आगे सीलोन द्वीप व करांचीसे व इनका दूसरा नाम महावीर था, इनका जन्म लेकर कलकत्ता तक अथवा उससे भी आगे कब हुआ, व कब मोक्ष हुई. इनके मातापि- श्याम, ब्रह्मदेश, नावा वगैरह प्रदेशोंमें जैनधर्मी ताका क्या नाम था व इनके चरित्रकी स्फुट लोग फैले हुए मिलते हैं. हिंदुस्थानके सम्पूर्ण २ बातें कौनसी हैं, इत्यादि परिचय अभीतक .. व्यापारका भाग जैनियोंके हायमें जैनियोंकी प्राप्त नहिं हुआ है. तथापि इन्होंने जैनधर्मका उत्कर्षावस्था. जान का है ऐसा भी प्रमाण एक शोधकने प्रचार कब किया इस विषयमें तत्कालीन शोधा है; बडे २ जैन कार्यालय, अन्योंमें थोड़ासा उल्लेख किया हुआ प्राप्त होता | भव्य जैनमन्दिर व अनेक लोकोपयोगी संस्थायें है. उसपरसे यह ईसवी सनसे ५२० वर्ष पूर्व | हिंदुस्थानके बहुतसे बडे २ शहरोंमें हैं, दक्षिहो गये हैं ऐसा कहा जाता है "आर्यविधा णमें अल्प हैं परन्तु उत्तर ६ मध्यभारत और सुधाकर" नामक ग्रन्थमें इनके विषयमें कहा है- गुजरात इन प्रदेशोंमें जैनियोंकी प्राचीन कार्य ------वाही बहुत दृष्टिगोचर होती है. प्राचीन का(१)वमान अथवा महावीरके विषयमें हमारा कहना लसे जैनियोंका नाम इतिहास प्रसिद्ध है जैनयह है कि वर्द्धमान तीर्थकरने उत्तरहिंदुस्थानमें कुंडलपुरमें जन्म लिया था. इनकी माताका नाम प्रियकारिणी तथा - धर्मके अनेक राजा हो गये हैं. त्रिशला भी था और पिताका नाम सिद्धार्थ राजा था. जैनी राजा. राजा वज्रकरण यह दशनगरमें उनके चरित्र सम्बन्धी समस्त विषय प्रसिद्ध हैं. उनका (वर्तमान मन्दसौरमें) राज्य कचरित्र जनबोधकके आदि सम्पादक श्रीयुत श्रेष्ठिवर्य | रता था. यह जिन देवके अतिरिक्त इतर हीराचन्द नेमिचन्दजी आनरेरी मजिस्ट्रेट शोलापुरने किसीको भी नमस्कार नहीं करता था. मराठी भाषामें बनाकर छपाया है. उसको तथा संस्कृत | व हिंदीके महावीर पुराण ( वर्द्धमानपुराण ) के देखनेसे स्त अवन्ती नगरी ( उजैन ) के सार्वभौम राजा पाठकोंकी जिज्ञासा पूरी हो सकती है. | सिंहोदरको जब इसने नमस्कार नहीं किया तब मनी .
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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