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________________ स्वदेशी आन्दोलन और बायकाट । .... ..... यही दो कृत्रिम उपाय हैं जिनके द्वारा हम अपने देश के व्यापार की उन्नति कर सकते हैं। यह दात सब लोगों को विदित है कि संरक्षित व्यापारनीति का अवलम्ब करना सरकार के अधीन है; परंतु स्वदेशी आन्दोलन स्वदेशी वस्तु का व्यवहार-हमारे ही हाथ में है। इस सान्दोलन के कारण यदि इस समय स्वदेशी वस्तुओं की कीमत कुछ बढ़ रही है तो यही समझना चाहिए कि अर्थशास्त्र की क्रिया का प्रारंभ हुआ है और इसका परिणाम भी उसी शास्त्र के अटल सिद्धान्त के अनुमार, हमारे देश के व्यापार के लिये, अत्यंत लाभदायक होगा। अंगरेज़ों ने हमारा व्यापार कैसे बरबाद किया। प्राचीन समय में इस देश का व्यापार बहुत अच्छी दशा में था । Hari यूरप के कवियों, लेखकों और प्रवासियों ने इस देश की कारीगरी, कलाकुशलता और वैभव की बहुत प्रशंसा की है। उस समय, इस देश की वस्तु, दुनिया के सब भागों में भी जाती थी; और वह, अन्य देशों की वस्तु से, ज्यादा पसन्द की जाती थी। अकल बंगाल-प्रांत से १५ करोड़ का महीन कपड़ा, हर साल, विदेशों को भेजा जाता था। पटना में ३३० ४२६ स्त्रियां, शाहबाद में १५६५०० त्रियां, गोरखपुर में ५७५६०० स्त्रियां चरखों पर सूत कातकर ३५ लाख रुपये कमाती थी । इसी प्रकार दीनापुर की स्त्रियां ह लाख और पुर्निया जिले की त्रियां १० लाख रुपये का, सूत कातने का काम करती थीं। सन १७५७ ई. में, जब लार्ड क्लाइव मुरशिदाबाद को गया था तब उसके संबंध में उसने यह लिखा था कि “ यह शहर लंदन के समान विस्तृत, आबाद और धनी है। इस शहर के लोग लंदन से भी बढ़कर मालदार हैं "* । परंतु जबसे अंगरेज़ इस देश में आये तबसे उन लोगों ने हमारे व्यापार को नष्ट करने का उद्योग प्रारंभ किया । (f:--"This city is as extensive, populous and rich as the city of London, with this difference: --------that there are individuals in the first possessing infinitely greater property than in the last city."
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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