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________________ स्वदेशी आन्दोलन और बायकाट । क्योंकि जबतक इस देश के अनियंत्रित गोरे अधिकारियों की अमर्यादित राजसत्ता कुछ सङ्कुचित न होगी और जबतक इस देश के निवासियों को, अपने देश के शासन प्रबंध में, कुछ हक़ प्राप्त न होंगे — जबतक इस देश की राजसत्ता, इस देश की प्रजा ही के हाथ में, न आ जायगी, अर्थात् जबतक इस देश में स्वराज्य स्थापित न हो जायगा — तबतक अन्य विषयों में उन्नति या सुधार करने का यत्न सफल न होगा । इस लिये कांग्रेस ने राजनैतिक विषयों ही को प्रधान महत्व दिया है । કર अब इस समय, हमारे नायकों का ध्यान औद्योगिक विषयों की ओर , विशेष रीति से लग रहा है । इस देश का प्राचीन व्यापार कैसे नष्ट हो गया, इस बात का वर्णन आगे किया जायगा । उससे यह बात मालूम होगी कि कम्पनी सरकार के समय अंगरेज - राज्यकर्ता प्रत्यक्ष रीति से व्यापारी थे । जब से इस देश का शासन भार पार्लिमेन्ट ने अपने ऊपर ले लिया तब से इस देश की गजमत्ता प्रत्यक्ष व्यापारियों के हाथ में नहीं है; परंतु इसमें सन्देह नहीं कि वह अप्रत्यक्ष रीति में व्यापारियोंही के हाथ में है । इन्हीं सत्ताधारी व्यापारियों के हित-साधन की चेष्टा हमारे गोरे 1 सर किया करते हैं । इस सिद्धान्त की सत्यता के लिये हम लार्ड कर्जन महोदय के वाक्यों को प्रमाण मानते हैं। एक समय आपने आसाम के चाय के अंगरेज - व्यापारियों से यह कहा था कि " इस देश में जितने अंगरेज हैं — चाहे वे खेती और खानों के काम पर हों, चाहे व्यापार और नौकरी करते हों उनका उद्देश एक ही है । अर्थात् सरकारी कर्मचारियों को चाहिए कि वे इस देश का शासन उत्तम रीति से करें; * और आप लोगों को चाहिए कि अपनी पूंजी भिन्न भिन्न व्यवसायों में लगाकर इस देश की सब सम्पत्ति चूस लें ।” हिन्दुस्थान में खानों का व्यवसाय करनेवाले जो अंगरेज व्यापारी हैं उनसे भी लार्ड कर्जन महोदय ने यही कहा था कि "मेरा काम शासन करने का है और आप लोगों का काम इस देश की सम्पत्ति को चूस लेने का । दोनों कार्य * इसका यही अर्थ है न, कि सरकारी कर्मचारी अपनी अमर्यादित और अनियंत्रित राजसत्ता का उपभोग चिरकाल लेते रहे !
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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