SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बायकाट अथवा बहिष्कार और स्यांशी वस्तु-व्यवहार की प्रतिमा। १९. व्यापार कैसे बरबाद किया " इस शीर्षक के लेख में स्वतंत्र रीति से की जायगी । वर्तमान समय में भी, मिस्टर चेंबरलेन इंग्लैण्ड में 'म्वदेशी व्यापार की रक्षा के नत्व पर ही. जोर दे रहे हैं। सारांश, आयलैंग्ड, अमेरिका, इटाली, चीन और इंगलैण्ड देशों के उदाहरणों को देखकर भी यदि हम लोग न चलें तो हमार समान प्रभाग और कोई न होंगे। प्रजा कितनी भी दुबल हो---वह निःशब क्यों न हो- यदि वह दृढनिश्चय और ऐक्यभाव में कुछ करना चाहै तो सब कुछ माध्य हो सकता है । वह अन्याया शासनकर्ताओं को और अविचारी राजमत्ताधारियों को भी राह पर ला सकती है। यदि हम लोग विदेशी वस्तु-विशेषत: इंगलैण्ड देश में बनी हुई वस्तु का व्यवहार न करें और जब विदेशी वस्तु की अत्यंत अवश्यकता हो तब पहिल एशिया खंड के देशों की बनी हुई चीजों का -- जापान, चीन, म्याम. काबुल, फारस. अरब आदि देशों की बनी हुई चीजों को पसंद करें: जब इन दशों में बनी हुई चीजों से भी हमारा काम न चलं तब अमेरिका, जर्मनी, फ्रान्म. रशिया आदि देशों की बनी हुई चीजों का व्यवहार करें परंतु किसी हालत में, इंगलैण्ड की बनी हुई, किसी वस्तु का, भूलकर भी, स्वीकार न करैं: तो हमाग यह कार्य आईन के प्रतिकूल कदापि नहीं कहा जा सकेगा। इतनाही नहीं, किन्तु हम यह कहते हैं, कि आईन के अनुसार हमको अपने इस कार्य से कोई भी पराङ्मुख नहीं कर सकेगा। हां, हम जानते हैं कि राजा के विरुद्ध बलवा करना बे क़ायदा है.-- गुनह है। परंतु हमें जो चीज़ पसंद है उसका स्वीकार करनं, और जो चीज़ नापसंद है उमका अस्वीकार करन, के काम में हम खद अपने मालिक हैं हम अपने मन के राजा हैं हमें कोई रोक नहीं सकता । जब कि हमारी सरकार हमारी प्रार्थना पर कुछ ध्यान नहीं देती तब हम उनके देश की बनी हुई चीजें खरीदकर, अपने द्रव्य से, उनके जातिभाई व्यापारियों का लाभ क्यों करें ? जिस देश के लोग हमारी प्रार्थनाओं पर कुछ ध्यान नहीं देते उस देश के लोगों का माल न लकर, उनके संबंध में, हम अपनी तिरस्कारबुद्धि क्यों न व्यक्त करें ? इसमें संदेह नहीं कि जो लोग
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy