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________________ यह प्रसंग बडेही मारके का है। गये कि उम प्रांत के निवासियों की बढ़ती हुई एकता का नाश हो, उनकी जातीय अभिलाषाओं का प्रतिबंध हो, जातीय कार्यों के लिये मिलजुलकर काम करने की उनकी शक्ति क्षीण हो जाय. शिक्षित लोगों का प्रभाव उनके दंश-भाइयों पर कम हो जाय. और कलकत्त का राजकीय महत्व घट आय। अब लाट माहब के किसी हिमायती को यह न कहना चाहिए, कि राज्यप्रबंध की सुगमता के लिय वंग-भंग किया गया, कुटिल और कूट राजनैतिक उद्देश्य की सिद्धि के लिये नहीं। बंगालियों को, और हिन्दुस्थान के सभी लोगों को, राष्ट्रीय-भाव सम्पादन न करने देने का यह प्रयत्न-उनके प्रांत के दो टुकड़े करके उनकी एकजातीयता और एकगष्ट्रीयता का नाश करने का यह उद्योग-सर्वथा निंदा है । इस कार्य में कोई सहदय राजनीति-निपुण-पुरुष सहमत न होगा। इम अनुचित कार्य से मरकार का हेतु कदापि सिद्ध न होगा। ऐसे अन्यायी और अनुचित कार्यों में माम्राज्य की चिरस्थायिता को धका लगने का डर है। अब यदि किमी का यह विश्वाम हो. कि हिन्दुस्थान-मरकार का अनियंत्रित और स्वच्छन्दानुसारी राज्य इस देश में अटल बना रहेगा. नो यह कथन एतिहासिक दृष्टि से अमत्य प्रतीत होता है। हमारे प्राचीन पुराणों की, रावण आदि राजाओं की, कथाओं को चाहे. क्षण भर झूठ मान लीजिये; परंतु दुनिया के सच माने गये इनिहाम में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जो इस बात को सिद्ध करता हो, कि किसी एक राष्ट्र ने (किसी एक जाति ने) अन्य राष्ट्र को (अन्य जाति को) दामत्व की श्रृंखला में ऐसा जकड़ कर बांधा कि वह धन्धन कभी ढीला हुआही नहीं। नियमित राज्यप्रणाली के अनुमार जो आन्दोलन अबतक किया जाता था उसकी निर्जीवता का अनुभव धीरे धीरे लोगों को होने लगा। तथापि कुछ लोगों को यह विश्वाम बना ही रहा, कि यदि सारी प्रजा एक होकर जोर से आन्दोलन करै तो उसमे निस्सन्देह लाभ होगा। इसलिये वंग-भंग की आज्ञा का विरोध करने में इस आन्दोलन-पद्धति की एकबार और परीक्षा ली गई। बड़ी बड़ी सभाओं में, जहां दस दस बीस बीस हजार श्रादमी हाजिर थे, बंगाल के अनेक राजा, महाराजा, अकील, मारिस्टर,
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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