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________________ स्वदेशी आन्दोलन मौर वायकाट। मी अनेक प्रार्थनापत्र भेजे गये; और इस देश की पराधीन-प्रजा की पुकार को निष्पक्षपात होकर सुननेवाली पार्लियामेन्ट-सभा में भी इस विषय की चर्चा कराई गई। सारांश, अंगरेजी कानून के अनुसार इस देश की प्रजा को जितना आन्दोलन करने का अधिकार ( अर्थात् जिसको अंगरेजी भाषा में Constitutional ngitation कहते हैं) था उतना सब किया गया; परंतु हमारे देश के दुर्भाग्य से, प्रजा की प्रार्थना पर, न तो हिंदुस्थान सरकार ने ध्यान दिया, न स्टेट-सेक्रेटरी ने कुछ विचार किया और न पार्लियामेन्ट-सभा ने ही कुछ मन लगाया ! गत सितम्बर की पहिली तारीख को गवर्नमेन्ट ने वंग-भंग की आज्ञा प्रकाशित कर दी !! सन् १६०५ ई० के अक्टूबर की सोलहवीं तारीख से ढाका, मैमनसिंग, फरीदपुर, बाकरगंज, त्रिपुरा, नोवाखाली, चटगांव, राजशाही, दीनाजपुर, जलपैगुरी, रंगपुर, बोना, पबना और माल्दा आदि जिलों को बंगाल-प्रांत से काटकर "पूर्वी बंगाल और आसाम" नाम का एक नया प्रांत बनाया गया !!! इस अनुचित आज्ञा के प्रकाशित होते ही सम्पूर्ण देश, एक छोर से दूसरी छोर तक, कांप उठा; उसमें एक प्रकार की विलक्षण स्वाभाविक शक्ति उत्पन्न हो गई। आजतक जो देश मुर्दे की तरह सोता पड़ा था उसमें प्राकृतिक चेतना की ज्योति फिर भी देख पड़ने लगी। जो बंगाली लोग केवल वाक्पटुता ही के लिये प्रसिद्ध हो रहे थे वे अब प्रांतरिक स्फूर्ति से एकदम जाग उठे और अपने हित-अपने देश के हित के लिये, स्वयं अपने ही बल पर ( अर्थात् केवल आत्मावलंबन करके) किसी दूसरे की सहायता की अपेक्षा न करते हुए, बद्धपरिकर हो गये । जब उन लोगों ने देखा कि भीख मांगने की पद्धति (.nuitmrioma! ngitation) से कुछ लाभ नहीं होता, तब उन्होंने यह निश्चय किया कि, हम लोगों को अपनी उन्नति अपने आप करनी चाहिए । इमलिये उन्होंने विदेशी-वस्तु के त्याग और केवल स्वदेशी वस्तु के व्यवहार की अटल प्रतिज्ञा की । अल्प समय ही में इस अटल प्रतिज्ञा का जोश सारे देश में फैल गया। साधारण लोगों को उक्त प्रतिक्षा में कुछ विशेषता देख म पड़ेगी;
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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