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________________ जैनधर्मपर व्याख्यान. भक्षण ( Vegeterianism) का प्रचार करना है। हमको भी भारतवर्षमें इसकी एक शाखा खोलनी चाहिये,एक भारतवर्षीय शाकभक्षणी सभा (Indian Vegcterian Fedcral Union ) बनानी चाहिये और "उस मेमनेकी (भेड़के बच्चेकी) रक्षा करनी चाहिये जिसके बध करनेकी आज तेरे उत्सवने आज्ञा देदी है. यदि उसमें तेरा जैसा ज्ञान होता तो क्या वह उछलता और कूदता फिरता ! अन्तसमयतक वह खुश हुआ सुन्दर भोजनको खाता है और उस हाथको चाटता है जो उसका रुधिर बहानेकेलिये खड़ा महाशयो ! विचार करो कि हम हिन्दू हैं,हम उन पुरुषोंको सन्तान हैं जो हिन्दू थे अर्थात् जिनसे महं' अर्थात् हिंसा 'दू अर्थात् दर थी ( हिं-हिंसा, और दृ-दूर ) हिन्द्र लोग वे नहीं थे जो सिधुनदीके तटपर वमते थे. वे लोग थे जिनसे हिंसा दृरथी, हमको शब्दोंक मिथ्या अर्थ न करने चाहिये. हमको शब्दों के यथार्थ अर्थ करने चाहिये. जो मनुष्य जिह्वाके लालुपी है वही कहते हैं कि हिन्दू लोग सिन्धुनीके तटपर बसा करते थे; हम अनी उन लोगोंको हिन्दू कहते हैं जिनसहि अर्थात हिंसा'दू' अर्थात् दूर थी और महाशयो ! क्या हमाग यह कहना ठीक नहीं है ? अवश्य है, दशा बताती है कि हम सत्य है, जानवर पुकारते हैं कि हमारा अर्थ यथार्थ है, इसलिय जो हमाग नाम है हमको वैसा ही बनना चाहिये हमको झूठा दावा करना उचित नहीं है । हमको सच्चे हिन्दू अर्थात् जैन बनना चाहिये दानाका एक ही अर्थ है,हमको दयामयी धर्मक उत्कृष्ट नियमका पक्ष लेना चाहिय और हिमालय पर्वतसे लेकर गमश्वग्तक और गुजरातसे लेकर ब्रह्मदेशतक बल्कि जनगजा अशोककी तरह अन्यदेशाम घोषणा ( डोंडी ) करनी चाहिये कि "अहिंसापरमो धर्मः किसीजीवका वध मत करो किसी जीवको मत मताओ, यही, परमधर्म है " हमको शिला और स्तम्भोंपर सोनके अक्षगेसे खोदना चाहिये कि अहार यज्ञ शिकार वा किसी और प्रयोजनके कारण भी किसी जीवका वध नहीं करना चाहिये । ___ महाशयों ! में अपने स्थानपर बैठने से पहले आपलोगोंका अत्यंत धन्यबाद करता हूं कि आपने कृपाकक शांति पूर्वक मेरे व्याख्यानको श्रवण किया । समाप्त
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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