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________________ था. जैनधर्मपर व्याख्याम. फिर भी हम जैनी उनकी इस भूलकी उपेक्षा करसक्ते हैं क्योंकि वे जल्दीमें ऐसा लिख गये. अतएव वे बड़े विद्वान हैं हमको चाहियेकि जो कुछ उन्होंने हमारे विषयमें कहा है वा लिखा उसको हम भूल जांय. यद्यपि जो कुछ उन्होंने लिखा है उसमें उनका कुछ दोष नहीं है क्योंकि उन्होंने जल्दीमें ऐसा लिख दिया और इसकी जांच न कर पाये परन्तु तो भी लोग इन अंग्रेज विद्वानोंके लेखानुसार हमको बौद्धोंको शाखा समझने लगगये हैं। ज्ञात होता है कि उन्होंने जैनमतकी प्राचीनता जाननेके लिये न तो जैनशास्त्र देखे न बौद्धोंके ग्रंथ पढे और न ब्राह्मणोंकी धर्मपुस्तके ही देखी ॥ महाशयो ! मैं आपको एक बात और बतलाता हूं वह यह है कि हंटर (Hunter) व साहब और कई अन्य महाशय बुद्धको महावीरस्वामीका चेला बुद्ध महावीरम्चाभाका शिष्य नहीं बतलाते हैं परन्तु जैनशात्रोंके अनुसार बुद्ध महावीरस्वामीका चेला नहीं था । जैनी उसको पिहिताश्रवका शिष्य बतलाते हैं. गौतमबुद्धके सिवाय एक गौतम इंद्रभृति था जो महावीरस्वामीका मुख्य गणधर और उनका चेला था. कई अंग्रेज विहानाने जैसे कि कोलक ( Colalbrooke ), स्टीवन्सन (Stevenson ) मेजर डिलेवन ( Major Delamaine ) और डाक्टर हेमिल्टन ( Dr, Hamilton ) आदिन इनदोनों गौतम बुद्ध और गौतम इंद्रभूतिको एक समझ लिया और चूंकि गौतम इन्द्रभूति महावीरस्वामीका शिष्य था. इसकारण उन्होंने गौतमबुद्धको भी महावीर का चेला समझ लिया। जैनीलोग एमः कभी नहीं कहते उन्हीं लोगोंने ऐसा कहा है जिन्होंने गौतमबुद्ध और गौतमइन्द्रभूतिका एक समझ लिया फिर नहीं मालूम क्यों लोग यह जैनियोंकी ही गलती बतलाते हैं। जैनी तो यह कहते हैं कि बुद्ध पिहिताश्रवका चेला था । महाशयो ! एकबात और है जिससे यह मालूम होता है कि जो कुछ जैनशास्त्रोंमें र लिखा है, वह बौद्धग्रंथॉमे एकतरह पर ऐसा मिलता है कि आश्चर्य 'वुद्ध, महावीर स्वामीक समय- होता है । मैं उपर कहचुका हूं कि बौद्धग्रंथोंमें लिखा है कि महावीमें हुवा. - रस्वामी उन छह तीर्थक उपदेशकोंमसे एक थे जो बुद्धके विरुद्ध उपदेश करते थे अर्थात् बौद्धमतके लोगकहते है कि बुद्ध और महावीर एकही समयमें हुए जैन शास्त्रामभी ऐसा ही लिखा है। ऊपर यह कहा गया है कि बुद्ध कीर्ति पिहिताश्रवका चेला था और पिहिताश्रय पार्श्वनाथके तीर्थमें हुआ। स्वामो आत्मारामजी कवलागच्छकी पट्टावलीका पता स्वामी पार्श्वनाथसे लेकर नीचे लिखीहुई भांति लगाते हैं. श्रीपार्श्वनाथ. श्रीशदालगणधर
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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