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________________ जैनधर्मपर व्याख्यान. अहिंसा परमोधर्मः के नियमका पूरा २ साधन किया है और सत्यता और दृढ़ भक्तिसे इसको अंत तक पहुँचाया है और जिसने सैकड़ों मनुष्योंको अपना साथी बनाकर असंख्यात जीवोंके प्राण बचाये हैं. जो कि अगर यह लोग मांसभक्षी होते तो उनके खानेके वास्ते अवश्य मारे जाते. और जो कि अगर यह लोग बलिदान या शिकार करते होते तो भी अवश्य बध किये जाते। प्रियश्रोतृगण ! मैं आपके सामने उस दयामय धर्म अर्थात् जैनधर्मके विषयमें व्याख्यान देनेको खड़ा हुआ हूं जिसने उस समयसे लेकर जब ऋषीश्वर ऋषभदेवने इस अवसार्पणी कालमें प्रथमही इसका उपदेश किया था. इस समयतक केवल सहस्रों मनुष्योंको अपना साथी बनाकर ही जीवरक्षा नहीं की बल्कि जिसने दूसरे मतके राजाओं और बादशाहोंके हृदयमें भी दया उत्पन्न करदी, जिन्होंने उन स्थानोंमें जहां जैनी रहते थे जीवहिंसा रोकनेकेलिये फरमान और आज्ञापत्र जारी किये । हमको पुस्तकोंके पढ़ने से केवल इतना ही नहीं मालून हुआ है कि जगत विख्यात अशोक जैसे जैन राजाने जो कि राजतरंगिणी आईनेअकबरी, अशोकअवधान, गिरनारके शिला लेख, और जैनकथाओंके अनुसार बौद्धमत स्वीकारकरनेसे पहले जैनी था, हिमालयके तुषारमय पर्वतोंसे लेकर रामेश्वर अन्तरीप तक और गुजरातसे लेकर बिहारतक यह डौंडी पिटवादी थी कि किसी जीवका किसी मतलबके वास्ते भी बध न किया जाय, बल्कि हम यह भी पढ़ते हैं कि बलबान और पक्षपातरहित अकबर जैसे मुसल मान बादशाहोंने भी फरमान(१)जारी किये थे कि उन स्थानोंमें जहां जैनी रहते हैं पंजूसणके दिनोंमे कोई जानवर न मारा जाय । मेवाड़के दश हजार ग्रामके अधिपति महाराज श्रीराजसिंह जैसे हिंदूराजाओंने भी अपने मंत्री, अमीर, पटेल और पटवारियोंको यह आज्ञा (२) दीथी कि प्राचीन कालसे जैनियोंके मन्दिर और स्थानोंको अधिकार मिला हुआ है इसकारण कोई मनुष्य उनकी हद्दमे जीवबध न करे. यह उनका पुराना हक है. तथा जो जीव नर हो या मादा बध होनेके अभिप्रायसे इनके स्थानसे गुजरता है वह अमर हो जाता है अर्थात् उसका जीव बच जाता है। आजकल भी हम देखते हैं कि बहुतसे स्थानोंमे जैनियोंको इसप्रकारके अधिकार मिले हुए हैं कि पंचमी, अष्टमी और चतुर्दशीके दिन उनस्थानों में जहां जैनी रहते हैं जीवहिंसा नहीं की जाती, इतना ही नहीं बल्कि इन पवित्र दिनोंमें भडबूजा भी अपना भाड़ नहीं जला सक्ता र मेरी जन्मभूमिमें कसाई मांसका टोकरा लेकर जैनियोंकी गली से नहीं जा सकता। औहे महाशयगण! आपको यह याद रखनाचाहिये कि इस दयामय जैनधर्मका उपदेश क्षत्रियोंने किया था. न ब्राह्मणोंने, न वैश्योंने और न शूद्रोंने। बहुतसे लोग जो इस विषयमें भज्ञानतारूपी अंधकारमें भटक रहे हैं कहते हैं कि जैनमत बनियोंका मत है वा सरावगियों।
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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