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________________ 422 - हिन्दी सारानुवाद - मण्डलेश्वर रायमुरारि सोविदेव सदा जयवन्त हो । अय्याबळे के पश्चात प्रभुओंके प्रतिनिधियोंने आडकीमें स्थित मादेवी ( महारानी) के बृहत् जैन मंदिर अविध पूजनके लिए दान दिया । [ नोट-कलचूरियों की दक्षिण शाखा पर एवं तत्कालीन व्यापारिक संघपर प्रकाश ] [१४] मलखेडगांवके भीतर नेमिनाथजिनालयके एक स्तंभपर - कन्नडलिपिमें (सन् १३९३ इ. ) स्वस्ति [ 1 ] शाके १३१३ प्रवर्तमाने अंगिरसंवत्सरे फाल्गुनमासे कृष्णपक्षे दशम्यां शनिवारे कनकक ळशभासुर जिनेश्वरसदने सुभगंभविष्णु मध्यपरिसरे श्रीनेमिनाथ चैत्यालये श्रीमूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुंडकुदान्वये रायराजगुरु मंडलाचार्य महावादवादीश्वर रायवादिपितामह सकलविद्वज्जनचक्रवर्ति सैद्धांताचार्य श्रीमत्पूज्यपादस्वामिनां प्रियशिष्य श्रीमद्वियानंदस्वामिनां निषिधिरियं कारापिता भद्रं ....... श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री [ ॥ ] मंदचिदानंद शुभं हिन्दी सारानुवाद - शकसंवत् १३१३ ( या १३१४), अंगिरस संवत्सरमें फाल्गुन वदी १० शनिवार के दिन नेमिनाथ चैत्यालय में प्रसिद्ध मूलसंघ, बलात्कारगण, सरस्वतीगच्छ, कुन्दकुन्दान्वयके ( अनेक बिरुदधारी) आचार्य पूज्यपाद स्वामीके शिष्य विद्यानन्दस्वामीके नाम पर यह fafeध बनवाई गई । [ नोट -- मलखेडके विद्यानन्द स्वामीकी तिथि निश्चय करानेवाला महत्त्वपूर्ण लेख ] JAINISM IN SOUTH INDIA [१५] तेंळी गांव भीतर एक मूर्ती पीठपर- प्राचीन कचडमे ( लगभग १३ वी शताब्दि इ. ) श्रीयापनीय संघद [वं ]दियूर्गणद नागवीर सिद्धान्तदेवर गुड्डुं बम्मदेवनु माडिसिद प्रतिमे [1] मंगळमहा श्री [ ॥ ] हिन्दी सारानुवाद - श्री यापनीयसंघ वन्दियूरगणके आचार्य नागवीर सिद्धान्तदेवके गृहस्थ शिष्य बम्मदेवने यह प्रतिमा बनवाई । [ नोट- १३ वी शताब्दीमें यापनीय संघका अस्तित्व एवं उसके एक गणका पता ] *** [१६] गळगांव भीतर एक पत्थरपर - प्राचीन कन्नडमें - त्रुटित ( लगभग १२ वी शताब्दि इ. ) ... ... ला कंचवळ्ळदिं तेंकलु .. ... काल कंब १३५० आबूरिं तेंक बसदि गवरेश्वर तोटर्दि बडगलु भोगेश्वर देवर हoिळ हिरियजंबुगेय प्रभुम लु कथंगों बिट केयि नागिमरस श्रीमद् iser महाप्रभु नागर मडियं प्रीतिदानवागि कोह केयि मने बडगला काल कंब ४५० यि कोरवार बहेयिंद हु प्रभुगळु कोट्ट गद्दे भम्रनाथदेवर ब ...... श्रीमनु महामण्डलेश्वरं वीर बिब्बरस मतिथि कोट्ट कब्बिन तोट गtय बम्मदे ........... बडगल मत्तरु ...... raft. यता गुळिय महाप्रभु सोवरसरु गé चैत्रपवित्र पूजारियशना.. ...... मतम ........ ....... गराय ... ... ... ...... ... ... *****
SR No.011025
Book TitleJainism in South India and Some Jaina Epigraphs
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP B Desai
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1957
Total Pages495
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size33 MB
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