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________________ JAINISM IN SOUTH INDIA हिन्दी सारानुवाद-विष्णुके वराहावतारकी स्तुति । तैलप द्वितीयसे लेकर त्रिभुवनमल्लदेव (सोमेश्वर चतुर्थ)तक चालुक्य राजाओंकी वंशावली । समस्त भुवनाश्रय आदि बिरुदोंके धारक त्रिभुवनमल्लदेव अपने शासनके तृतीय वर्ष में, विक्रम नाम संवत्सरमें पोट्टलकेरे स्थानसे शासन कर रहे थे । उनके अधीन कुन्तलदेशमें धनधान्य सुवर्णसे समृद्ध तथा अहिहयवंश (हैहयवंश) के राजाओंकी अभ्युदयश्रीका जन्मस्थान अरल्नाडु (जिला) था। वहां अनेक मन्दिरोंसे विराजित सेडिम्ब नामका नगर था। उसका दुर्ग शत्रुओंसे अजेय था। सेडिम्बके विनों और तीन सौ महाजनोंकी (पूर्ववत्) प्रशंसा । उनमें प्रमुख एवं प्रख्यातकीर्ति गुणवान् चन्दिराज था जो बड़ा अर्हद्भक्त था। उसने अपने उज्वल नाम और यशके अनुरूप अपने पुण्यके लिए सेडिम्ब नगरका उन्नत दरवाजा (गोपुर) बनवा दिया। यह सेडिम्ब दुर्ग सदा काल तक रहे । इस शिलालेखको माडिहाळ निवासी मल्लोजके पुत्र रामोजने पाषाण पर उत्कर्णि किया। [नोट-इस शिलालेखसे तत्कालीन राजनीतिक एवं धार्मिक इतिहासका दिग्दर्शन होता है ] [८] सेडम गांवके भीतर चिक्कबसदी नामके मन्दिरसे प्राप्त-प्राचीन कन्नडमें ( लगभग १३ वी शताब्दि इ.) पार्श्वदेवरिगे केयि मत्तरु १२ नंदन संवछ(स)र [1] हिन्दी सारानुवाद-पार्श्वनाथ देवको नन्दन सम्बत्सरमें १२ मत्सर प्रमाण कृष्यभूमि दानमे दी। [९] आडकी गांवके भीतर एक शिलास्तंभपर-प्राचीन कन्नडमें (लगभग सन् १११५ इ.) [पहली ओर] श्रीमत्परमगंभीरस्यावादामोधलांछनं [1] जीयात्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ [१] स्वस्ति [1] समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परमभट्टारक सत्याश्रयकुळतिळकं चालुक्याभरणं श्रीमत् त्रिभुवनमल्लदेवरु जयन्तीपुरद नेलेवीडिनोळ् सुखसंकथाविनोददिं राज्यं गेय्युत्तमिरे ॥ स्वस्ति [1]..... ....मणिमयूखरेखाळंकृतचरणरश्मि[गढुं] भगवदर्हत्परमेश्वर परमभट्टारक ......र्गतसदसदादि सप्त .... समालिंगितराद्धांतादिसमस्त ... धिगळु जिनेंद्रसूक्तामृतरसास्वादिगढुं जिनसमयशरधिसंवर्धनशरसमयसमुदितसंपूर्णसुधामरीचिगर्ल कुमततमस्तमःपटळप्रभेदनप्रचण्डतिग्मरोचिगढुं जिनसमयसरोजिनीविराजमानराजमराळहं काषायकदळीपंडखंडनोइण्डचण्डशुण्डाळलं वाकामिनीपीनोमतपयोधरद्वयालंकृततरळमशकाचरणरं वंदियूर्गणसमुद्धरणहं तुहिनहिमकिरण. सुरसरितफेनसंकाशविशदान्तःपटळबहळधवळीकृतसकळदिकुचक्रर घिनतविनेयचक्र भन्यजनमाकन्दनन्दनवसन्तर सकळदोषरिपुकुळकृतान्तरं भक्तजनसस्यसमितिसंवर्धनसुधाप्रकर्षलं गुणगणोतुकरुषरुं श्रीनेमिचंद्रसिद्धान्तदेवपादारविन्द सौरमास्वादनोन्मत्तशिलीमुखरं ..... शिळीमुखरं जिनेंद्रकथितविमळचारित्रपरमेश्वरकै मुनिजनाधीश्वररं समस्तवस्तु[स्वरूप] शानदीपवर्तिगळु दिव्यतपोमूर्तिगळुमप्प श्रीमद्गुणवीरसिद्धान्तदेवखिरं जीयात् ॥ मृत्यन्ती भुवने यतस्मुक्मिळा यत्कीर्तिहसी सदा तस्मादेव च तन्नदीप्रवणकक्षीराब्धिवर्तते [1] कालिंदीप्रववाहफेमनिचयो गंगातरंगायते सौमि श्रीगुणवीरनाममुनिपं कामेभकंठीरवम् ॥ [२]
SR No.011025
Book TitleJainism in South India and Some Jaina Epigraphs
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP B Desai
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1957
Total Pages495
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size33 MB
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