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________________ SAIN INSCRIPFIONS. जैन लेख संग्रह। भारतके प्राचीन इतिहासके प्रमाणोंके प्रधान साधन लेख ही है। विशेषतः जैनियोंके सिलसिले वार इतिहासके अभाव में इन्हों के लेखों का संग्रह बहुत ही आवश्यक है। इतिहास का बहुतसा भाग शिलालेख पर निर्भर है। जो वात शिलालेखसे जानी जा सकती है वह इतिहाससे नहीं, क्योंकि इतिहास में समय परिवर्तनसे फेरफार पड़ जाता है किन्तु पत्थर पर जो कुछ लिखा गया यह पत्थर के अन्त तक बना रहता है । अतएव लेखों से इतिहास को बहुत सी सहायता मिल जाती है। यह आनन्द की बात है कि भाज कल बहुतसे सजनोंकी इस पर दृष्टी भी आकर्षित हुए है। में इस विषय पर अधिक लिखकर पाठकोंका समय नष्ट करना नहीं चाहता, किन्तु संक्षेपमें कुछ सूचना देता ताकि इस ओर भौर भी लोग ध्यान देकर ऐसे संग्रहसे लाभ उठावें और मेरा परिश्रम सफल करें। मुझे लेखों का यहुत दिनों से प्रेम था, खास करके हमारे जैन लेख देखतेही मेरा जी हराभरा हो जाता था, परन्तु अगरेजी जर्नेल, पत्रिका, रिपोर्ट और स्वदेशो भाषाके पत्र या पुस्तकों में लेख देखने के सिवाय स्वयं कोई लेख देखने का अवसर न मिला था। कुछ दिनोंसे यह जैन लेखों की उपयोगिता मेरे मस्तिष्क में ऐसी घुम पड़ी कि जहां कहीं किसीके पास लेखका हाल सुना या किली मन्दिरादि स्थानों में गया तो वहां के लेन देखे बिना चित्त को शांति नहीं होती थी। इस कारण मैंने स्वयं जो लेख पढ़ें है इतने हक हो गये कि उसका एक संग्रह हो सकता है। इसी विचारसे यह कार्यों में प्रवृत्त हुआ है। मेरा संस्कृत आदि भाषाओं में अधिक प्रवेश नहीं है या मैं कोई बड़ा विद्वान नहीं हूँ, विशेष कर जैन शास्त्र में मेरा स्खला प्रवेश है, इस कारण बहुतसे लेख पढ़ने में भ्रम हो गया होगा सो, भाशा है, कृपया मुधी जन सुधार कर पढ़ेंगे। लेख स्वास करके पत्थर और धातु पर ही होते हैं। पत्थर परका लेख धातु से शीघ्र भय हो जाता है। इस कारण प्रायः पत्थर पर का लेख कुछ काल में अस्पष्ट हो जाता है। अतएव मैंने विशेष करके धातु परके लेखों को अधिक पढ़ने का प्रयास किया है। लेखों पर प्रायः निम्नलिखित बातें लिखी रहती हैं:
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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