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________________ (१५) मा० घेतलदे पु० व. हियति पितृ श्रेयसे श्री शांतिनाय विवं कारितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्र सूरि श्री जिन सागर सूरिभिः प्रतिष्ठिता ।। ( 768 ) सं० १५२७ वर्षे वैशाख बदिइ शुक्र श्री माल ज्ञातीय पितामह वीरापितामही वीरादे सुत पितृ डाहा मात्र जासू श्रेयो) सुस राजा भोज ठाकुर सी एतै श्री विमलनाथ मुख्य चतुर्विशति पहः कारितः श्री पूणिमा पक्षे श्री साधु रत्न सूरि पढे श्री साधु सुंदर सूरीणामुपदेशेन प्रतिः विधिना श्री संधेन आंवरणि वास्तव्यः । ( 760 ) संवत १५७६ वर्ष माघ सुदि १३ दिने बुध वासरे स्तम्भ तीर्थ धासी जकेश ज्ञातीय सा० पातल भा० पातलदे पुत्र सा जइसाभार्या फते पुत्र सा० सीहा सहिजा मा• गुरी (?) पुत्र सा० पडलिक भा० कमला पुत्र सा जीराकेन भा० पुनी पितव्य सा० सीमा पापा वजा कुटुंब युतेन पितृ वचनात् स्वसंतान अयोर्थे श्री सुमतिनाध विवं कारितं प्रति. तपागच्छे श्री साम सुन्दर सूरि संताने श्री सुमति साधु सू० पट्टे श्री हेम बिमल सूरिभिः महोपाध्याय श्री अनंत हंस गणि प्र० परिवार परिवृत्तौ। ( 770 ) संवत १६१९ वर्षे वृहत खरतर गच्छे श्री जिन माणिक्यसूरि विजय राज्ये श्री माल ज्ञातीय पापड़ गोत्र ठाकुर रावण तत्पुत्र उणगढमल तद्धार्या नयणी तत्पुत्र जीवराजेन श्री पार्श्वनाथ परिग्रह कारापितं - - धर्म सुंदर गणिना प्रतिष्ठितं शुभं भवतु ।
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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