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________________ माटोये प्रतिमा विधि मया कुंवर स्वहस्ते स्थापितं प्रतिष्टितं च श्री वृहत खरतर गच्छे । ।जु । श्री जिन सोमाग्य सूरि जीवित राज्ये पं. देवदच जी तत् शि. प. हीरा चंद्रेण प्रतिष्ठितं च श्री। रैनपूर तीर्थ। मारवाड़के पंचतीर्थीमें रैनपूर तीर्थ नलिनीगुल्म विमानाकार तेमकिला अगणित स्तम्मोंसे भरा हुआ त्रिलोक्य दोपक नामक विशाल मंदिरके कारण जगत्प्रसिद्ध है। "आयुकी कोरणी रैनपूराकी मांडनी" देखने ही योग्य है। मंदिरकी प्रशस्ति । ( 700 ) स्वस्ति श्री चतुर्मुख जिन युगादीश्वराय नमः ॥ श्रीमद्विक्रमतः ११९६ संख्य वर्षे श्री मेदपाट राजाधिराज श्री वप्प १ श्री गुहिल २ मोज ३ शील १ कालसोज ५ अर्त भर सिंह ७ सहायक र राज्ञो सुत युतस्व सुवर्णतुला तोलक श्रीखुम्माण ६ श्रीमदल्लट १० नरवाहन ११ शक्तिकुमार १२ शुचिधर्म १३ कीर्गिवर्म १४ जोगराज १५ वैरट १६ वंशपाल १७ बैरिसिंह १५वीरसिंह १९ श्री अरिसिंह २० चोड़सिंह २१ विक्रमसिह २२ रणसिंह २३ क्षमसिंह २४ सामंतसिंह २५ कुमारसिंह २६ मधनसिंह २७ पद्मसिंह २८ प्रसिंह २६ तेजस्विसिह ३. समरसिंह ३१ चाहूमान भीकोतूक नृप श्रीअल्लावदीन सुरत्राण जैत्र वय वश्य श्री भुवन सिंह ३२ सुत श्रीजय सिंह मालवेश गोगादेव जैत्र श्री लक्ष्मसिंह पुत्र अजयसिंह ३५ भातु श्री अरिसिंह भी हम्मीर २७ भी खेतसिह ३८ मी लक्षाहूयनरेन्द्र ३६ मंदन सुवर्ण तुलादिदान पुण्य परोपकारादि सारगुण सुरद्रुम विश्राम नंदन श्रीमोकल महिपति १० कुलकानन पंचान
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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