SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १५३ ) परिवार युतेन स्वयोर्थ । श्रो नमिनाथ चतुर्विंशति पहः कारित: प्रतिष्ठित तपागच्छे श्री सुमतिसाधु सूरि पट्टे परम गुरुगच्छ नायक श्री हेम विमल सूरिभिः ॥ श्री ॥ सिद्धचक्र पट्ट पर। ( 650 ) संवत १५५६ वर्षे आश्विन सुदि ८ वुधे श्रीस्तम तीर्थ वास्तव्य प्राग्वाट ज्ञातीय म० बछाकेन श्री सिद्ध चक्र यंत्र कारितः। सेठ नरसी केशवजकिा मन्दिर। ( 651 ) संवत १६१४ वर्षे वैशाष सुदि २ बुधे प्राग्वाट ज्ञातीय दोसी देवा मार्या देमति सुत दो० वना भार्या वनादे सु० दो० कुधजी नाम्न्या पितु श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विवं कारापितं तपागच्छाधिराज अहारक श्री विजयसेन सूरि शिष्य पं० धर्मविजय गणिना प्रतिष्ठिसमिदं मंगलं भूयात् ॥ ( 652 ) संवत १९२१ वर्षे शाके १७८३ प्रवर्त्तमाने माघ शुदि तिथौ गुरुवासरे श्रीमदंचल गच्छे पूज महारक श्री रतन सागर सूरिश्वराणामुपदेशात् श्री कच्छदेसे कोठारा नगरे ओशवंशे लघुशाषायां गांधिमोती गोत्रे सा. नायकमणजी सा० नाक नणसों तस आर्या हीरवाई तत्सुत सेठ केशवजी तस भार्या पावो वाई (तत्पुत्र नरसी आई नाना मना) पंचतीर्थी जिनविंवं भरापितं ( अंजन शलाका करापितं ) अठास गण ।
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy