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________________ ( १४४ ) ( 616 ) सं० १४९९ वर्षे फागुण वदि २ गुरौ श्री तावद्वार गच्छे पांढरा गोत्रे जैसा प्रा० जसमादे पु० सोजा भा० बापू पुठीयलमेदा सह० श्री शांतिनाथ वि० प्र० का० श्री कीर्त्तिका चार्य स० श्री वीर सूरिभिः । (617) 13 पुत्र सा० सं० १५३६ वर्षे फा० सुदि ३ रत्री उके० पदे दोसी गोत्र े ० सा० सीरंग - डूडकेन भा० दाडिमदे पुत्र कीता तेजादि परिवारयुत श्री धर्मनाथ वित्रं कारितं श्रेयसे प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्र सूरि पट्टे श्री जिनचंन्द्र सूरि श्री जिन समुद्र सूरिभिः श्री पद्मप्रभ विं । ( 618 ) सं० १५८२ वर्षे जे० सुदि १० शुक्र वढतप श्री वन रतन सूरि श्री धर्मनाथजी का मन्दिर । (619) ---| सं० १४९३ जेठ बदि ३ मंगले उप० ज्ञा० पावेचा गोत्र सा० बीरा भा० वील्हणदे पुत्र कुंभाकेन भा० कामलदे युतेन स्वश्रे० विमल विवं का० प्र० बृहत गच्छे देवाचार्यान्वये श्री हेमचन्द्र सूरिभिः ॥ छ ॥ ( 620 ) सं० ९५०३ वर्षे ढोसी-धर्माकस्य पुण्यार्थं दो० वूछा पुत्र संग्राम आवकेण कारितः श्री श्रेयांस विंवं प्रतिष्टितं श्री जिनभद्र सूरिभिः श्री खरतर गच्छे ।
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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