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________________ ( १०५) ( 433 ) श्री मत्संवत १९७१ वर्षे वैशाष सुदि ३ नो प्रो आगरा वास्तव्योसवाल ज्ञातीय लोढा गोत्रे गाव-जा स० ऋषभदास भार्या रेषश्री तत्पुत्र श्री कुरपाठ सोनपाल संघाधिपे स्वानुवर दुनोचंदस्य पुण्यार्य उपकाराय श्री अंचलगम्छे पूज्य श्री ५ कल्याण सागर सूरिणामुपदेशेन श्री आदिनाथ विवं प्रतिष्ठापितं । ( 434 ) सं० १८७७ मि० फा० शु० १३ श्री कुंथुनाथ जिन विवं दू० विसनचंदेन कोरितं प्रतिष्ठितं श्री जिनहर्ष सृरिमिः ॥ ( 435 ) सं० १८९७ फा० शु० ५ श्रीपार्श्वनाथ वि० प्र० श्री पार्श्वनाथ कि० प्र० श्रीजिन महेन्द्र सूरिण्युपदेशेन कारिता। सेठ उदयचन्द धर्म पत्नी महाकुमारिभिदया। वाचनाचार्य श्री चारित्र नन्दन गणिभिर्देश--- ( 436 ) सं० १८६७ फा० सु०५ श्री आदिनाथ विवं प्र० श्री जिनमहेन्द्र सूरिणा का. वोहरा नाथूराम पत्नी साहवां नाम्न्यात्म श्रेयसे वाचक चारित्र नन्दन गण्युपदेशतः॥ सेठधनसुखदासजी का मंदिर। ( 437 ) सं० १४६३ वर्षे माह वदि १ वुधे श्री श्रीमाल ज्ञातीय व्य० नरपाल मार्या नयणादे सुत देपाकेन श्रीपद्मप्रभ विवं कारितं प्रतिष्टितं । -- गच्छे श्रीगुणदेवसूरिभिः ॥
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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