SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * बनारस * कागोदेशका वह वाराणसी वा वनारस सहर जैनियोंका बहुत पवित्र स्थान है। हिन्द ओंका भी प्रसिद्ध तीर्थ है। यहां प्रतिष्ठ राजा और पथ्वी राणीके पुत्र मां तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथजी का च्यवन और जेठ सुदि १२ जन्म, जेठ सुदि १३ दीक्षा, फागुन वदि ६ केवल ज्ञान और अश्वसेन राजा वामा राणी के पुत्र २३ मां तीर्थंकर भी पार्श्वनाथजी का भी च्यवन, पोष वदि १० जन्म, पौष वदि ११ दीक्षा और चैत वदि केवल ज्ञान यह ८ कल्याणक भये हैं। महल्ले मेलुपुरा और प्रदेनीमें मंदिर बने हुए हैं सहरमें कई एक मंदिर हैं। यहां से ४ कोस पर सिंहपूरी है यहां ११ मां तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथजी का च्यवन, फागुन वदि १२ जन्म, फागुन वदि १५ दीक्षा और माघवदि केवल ज्ञान प्रया है। निकट में वौद्धोंका सारनाथनामक प्राचीन स्थान है। सुत टोलका मंदिर। पंच तीर्थी पर। ( 403 ) सं० १५१५ वर्षे माह शुक्ल १३ दिने श्री ओसवाल ज्ञातीय मूंघा मार्या माधलदे सु० धनदत्तन पितृ श्रेयो) श्री शितलनाथ विव पूर्णिमा पक्ष : श्री सागरतिलक सूरि पहे श्री महितिलक सूरि कारितं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः ॥ सं० १५५६ वर्षे आषाढ़ सुदि दिने चंपकनर वासि . जावड़ भार्या पूरी सुत घरपाकेन भार्या हाई सुत माकर प्रमुख कुटुम्ब युतेन श्रीशांतिनाथ विवं श्री निममानना भार्या कारितं प्रतिष्ठितं श्री निगमा विभावक भी इन्द्रनंदि सूरिभिः श्रीमीः ॥
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy